भव्य दिव्यता का एहसास कराता है प्रयागराज का ‘ताले वाले महादेव’ मंदिर
पारुल माधव
- 04 Mar 2025, 04:26 PM
- Updated: 04:26 PM
(तस्वीरों के साथ)
(कुणाल दत्त)
प्रयागराज, चार मार्च (भाषा) उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में एक प्राचीन शिव मंदिर है, जहां देश के विभन्न कोनों से आए श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ती के लिए फूल, प्रसाद और ताले चढ़ाते हैं। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु मंदिर पहुंचकर ताला खोलते हैं और उसे अपने साथ घर ले जाते हैं।
‘पीटीआई-भाषा’ के एक संवाददाता ने महाकुंभ मेले के समापन से कुछ दिन पहले शहर के बीचोंबीच मुट्ठीगंज इलाके की एक संकरी गली में स्थित ‘श्री नाथेश्वर महादेव मंदिर’ का दौरा किया, जहां स्थापित देवता को ‘ताले वाले महादेव’ के नाम से जाना जाता है। मेले के दौरान देश-दुनिया से आए कई तीर्थयात्रियों और कुछ पुलिसकर्मियों ने भी मंदिर में ताला लगाकर मन्नत मांगी।
मंदिर कक्ष के अंदर-बाहर की दीवारों, रॉड और रेलिंग पर चमकदार तालों की कतारें दिखाई देती हैं, जिनमें से कई पर नाम उकेरे हुए हैं, जबकि कई को पहचान के लिए अलग-अलग रंगों से रंगा गया है। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग इन तालों का दिव्य संरक्षक प्रतीत होता है।
श्री नाथेश्वर महादेव मंदिर में लगाए गए मन्नत वाले तालों की कोई आधिकारिक गणना उपलब्ध नहीं है, लेकिन मंदिर के महंत शिवम मिश्र का कहना है कि वहां लगभग “50,000 ताले” होंगे।
मिश्र ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “भारत का शायद ही ऐसा कोई राज्य होगा, जहां के किसी श्रद्धालु ने इस मंदिर में मन्नत वाला ताला न लगाया हो। रोजाना औसतन 100 से 150 ताले लटकाए जाते हैं।”
मिश्र ने दावा किया कि थाईलैंड और ब्रिटेन के एक-एक श्रद्धालु ने भी श्री नाथेश्वर महादेव मंदिर में मन्नत वाला ताला लगाया है।
उन्होंने कहा, “मंदिर बहुत प्राचीन है और इसके गर्भगृह की पिछली दीवार पर एक पट्टिका पर बहुत पुराना शिलालेख भी अंकित है। हमें नहीं पता कि इस मंदिर का निर्माण कब हुआ था। इसलिए मैं उत्तर प्रदेश सरकार से अपील करता हूं कि वह इसके पत्थरों का पुरातात्विक अध्ययन कराए।”
श्री नाथेश्वर महादेव मंदिर पवित्र ‘त्रिवेणी संगम’ से लगभग छह किलोमीटर दूर है, जहां गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी मिलती हैं।
बिहार के मधेपुरा जिले के निवासी राकेश कुमार (25) ने संगम में पवित्र स्नान के एक दिन बाद 24 फरवरी को श्री नाथेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन किए।
‘ताले वाले महादेव’ से मांगी गई मन्नत के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “यह नौकरी से संबंधित है।”
श्री नाथेश्वर महादेव मंदिर में मन्नत वाले ताले लगाने की पंरपरा आखिर कैसे शुरू हुई।
महंत मिश्र के मुताबिक, “2020 में यह मंदिर अच्छी स्थिति में नहीं था। फिर भगवान की कृपा और अनेक गुरुओं के मार्गदर्शन से इसके जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ।”
उन्होंने बताया कि 26 फरवरी को महाकुंभ मेले के आखिरी स्नान पर्व महाशिवरात्रि के मौके पर मंदिर में भव्य ‘रुद्राभिषेक’ और ‘महा-आरती’ का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।
मिश्र के अनुसार, उन्होंने 2023 में मंदिर में मन्नत वाला “पहला ताला” लगाया था, जिसके बाद वहां ऐसे तालों की संख्या तेजी से बढ़ती गई और यह मंदिर ‘ताले वाले महादेव मंदिर’ के रूप में पहचाना जाने लगा।
उन्होंने दावा किया, “साधना के दौरान मुझे काठमांडू के पशुपति नाथ से यह दिव्य आदेश मिला था कि मैं मंदिर में पहला ताला लगाऊं और मैंने ऐसा ही किया। मैं हर साल पशुपति नाथ के दर्शन के लिए जाता हूं।”
उन्होंने कहा कि वह हर महीने मंदिर में एक ताला लगाते हैं, लेकिन इससे कोई “मन्नत” नहीं जुड़ी हुई होती है।
मिश्र के मुताबिक, 2023 में वहां केवल 150 ताले ही बचे थे। उन्होंने कहा कि मंदिर में तालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जबकि कई ताले खुल चुके हैं, जिसका मतलब है कि मनोकामनाएं पूरी हुई हैं।
महंत के अनुसार, मंदिर में मछली के आकार और भगवान गणेश के चित्र वाले ताले भी लगाए गए हैं।
उन्होंने कहा, “कुछ ताले खुले हुए हैं, जिनमें चाबी भी लगी हुई है। ये ताले ‘मन्नत’ के तौर पर नहीं लगाए जाते हैं, बल्कि बाबा को ‘शृंगार’ के रूप में अर्पित किए जाते हैं।”
भाषा पारुल