मित्र देश बने बिना चीन के साथ संबंध सुधारने से बहुध्रुवीय दुनिया में भारत को मिलेगा लाभ: प्रकाश करात
वैभव प्रशांत
- 13 Mar 2025, 07:20 PM
- Updated: 07:20 PM
(अंजलि ओझा)
नयी दिल्ली, 13 मार्च (भाषा) माकपा नेता प्रकाश करात ने बृहस्पतिवार को चीन के साथ मित्र राष्ट्र बने बिना संबंध सुधारने की वकालत करते हुए कहा कि इससे बहुध्रुवीय दुनिया में भारत की स्थिति सुधारने में मदद मिलेगी और डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद पैदा चुनौतियों को संतुलित किया जा सकेगा।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के अंतरिम समन्वयक करात ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि अमेरिका के साथ 2008 में हुआ परमाणु समझौता, जिसका वामपंथियों ने पुरजोर विरोध किया था, दोनों देशों के बीच गहरे रणनीतिक गठजोड़ के लिए एक मजबूत कारक बन गया और डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत अब ‘उलझन’ में है।
उन्होंने कहा कि बहुध्रुवीय दुनिया में भारत के हितों की रक्षा के लिए चीन के साथ संबंधों में सुधार होना चाहिए, भले ही दोनों एशियाई देश मित्र राष्ट्र नहीं बनें।
करात ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि बहुध्रुवीय दुनिया में हमारे खुद के देश के लाभ और हित के लिए चीन के साथ वास्तव में मित्र राष्ट्र बने बिना उसके साथ संबंध सुधारना हमारे लिए जरूरी है जो एक तरह के संतुलित और सामान्य किस्म के हों।’’
उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में हाल में तनाव की स्थिति में कमी और कैलाश मानसरोवर जाने के लिए अधिक वीजा देने जैसे कदम दिखाते हैं कि कुछ सुधार हुआ है।
माकपा नेता ने कहा, ‘‘इसलिए, मुझे लगता है कि हम अब सही रास्ता अपना रहे हैं। हमें सहयोगी बनने की जरूरत नहीं है, लेकिन अगर हम अच्छे संबंध बनाए रखते हैं, तो इस जटिल विकासशील अंतरराष्ट्रीय स्थिति में हस्तक्षेप करने की हमारी क्षमता बढ़ेगी और यह हमारे लिए लाभकारी होगा।’’
अमेरिका के साथ चल रहे टैरिफ मुद्दे के बीच उन्होंने कहा कि 2008 में जब वामपंथी दलों ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार से समर्थन वापस ले लिया था तो इस कदम को केवल समझौते के संदर्भ में देखा गया था।
उन्होंने कहा कि हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, इसने रणनीतिक संबंधों को इस तरह से विकसित किया है कि आज ट्रंप प्रशासन भारत के साथ हुए इन समझौतों से ‘हटने’ की कोशिश कर रहा है।
साल 2005 से 2015 तक माकपा के महासचिव रहे करात उस समय पार्टी के शीर्ष पद पर थे, जब माकपा ने संप्रग सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिसके कारण गठबंधन सरकार को संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था, हालांकि समाजवादी पार्टी के समर्थन से सरकार बच गई थी।
करात ने कहा, ‘‘लोगों ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के प्रति हमारे विरोध को केवल उस असैन्य परमाणु करार की रूपरेखा में ही देखा। हमने इसे व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा, क्योंकि वास्तविकता यह थी कि अमेरिका कह रहा था कि हम आपको यह परमाणु समझौता देंगे, हम उन सभी प्रतिबंधों और निषेधों को हटा देंगे जो पहले थे... लेकिन बदले में आपको हमारे साथ एक सैन्य और रक्षा समझौता करना है, जो हमने किया - दस वर्षीय सैन्य रूपरेखा समझौता।’’
उन्होंने कहा, ‘‘भारत-अमेरिका परमाणु समझौता इसके लिए एक तरह से मजबूती प्रदान करने वाला कारक था। यह हमारी आपत्ति के प्रमुख कारणों में से एक है... पिछले 15-20 वर्षों में हमने देखा है कि हम (अमेरिका के साथ) एक बहुत गहरे रणनीतिक गठजोड़ में प्रवेश कर गए हैं। इसलिए, अब जब ट्रंप आ गए हैं तो आप मुश्किल में हैं।’’
भारत और अमेरिका ने 2005 में 10 वर्षीय ‘अमेरिका-भारत रक्षा संबंधों के लिए नई रूपरेखा’ पर हस्ताक्षर किए थे, और उसके बाद, दोनों देशों ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार पर सहमति की घोषणा की थी, जिसके माध्यम से अमेरिका ने भारत पर महत्वपूर्ण परमाणु अप्रसार प्रतिबंधों को हटा दिया था, और इसके बदले में भारत ने कोई और परमाणु परीक्षण नहीं करने तथा अपने असैन्य परमाणु केंद्रों को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के सुरक्षा उपायों के तहत रखने की प्रतिबद्धता जताई थी।
उन्होंने कहा, ‘‘प्रणब मुखर्जी, जो उस समय रक्षा मंत्री थे, उन्होंने सबसे पहले जाकर यह करार किया। फिर परमाणु समझौता हुआ। हमने कहा था कि यह अमेरिका के साथ एक व्यापक रणनीतिक गठबंधन बनाने का हिस्सा है और हमें उस तरह के गठबंधन में नहीं पड़ना चाहिए।’’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल की अमेरिका यात्रा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन भारत को अपने घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उनसे और अधिक हथियार खरीदने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहा है।
करात ने कहा, ‘‘जब हमारे प्रधानमंत्री वाशिंगटन गए, तो ट्रंप ने हमसे कौन सी दो चीजें प्राप्त कीं? एक है अधिक हथियार खरीदना। वे हमें हथियार बेचना चाहते हैं क्योंकि वह (ट्रंप) चाहते हैं कि अमेरिका का हथियार उद्योग फल-फूल जाए। इसलिए, एक प्रतिबद्धता में फंसकर हम अधिक हथियार खरीदेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दूसरा, मुझे लगता है कि हम अमेरिका से 10 अरब अमेरिकी डॉलर का तेल तथा गैस और खरीदेंगे... आप मना करने की स्थिति में नहीं हैं। उदाहरण के लिए, वे हमें जो लड़ाकू विमान देने की पेशकश कर रहे हैं, वह एफ-35ए है। यह ऐसी चीज है जिसके बारे में हर कोई कहता है कि यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं होगा। यह टिकाऊ नहीं है। यह बहुत महंगा है। लेकिन क्या आप मना कर पाएंगे?’’
करात ने कहा, ‘‘हम यह नहीं चाहते। इसलिए, मेरा कहना है कि ट्रंप के आने से, राष्ट्रपति बतौर उनका कार्यकाल हमारे लिए बहुत नई चुनौतियां पेश करेगा। और हमारी विदेश नीति और रणनीतिक सोच या दृष्टिकोण पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए ताकि हम एक बढ़ती हुई बहुध्रुवीय दुनिया में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रख सकें।’’
करात ने कहा कि बहुध्रुवीय दुनिया में भारत के हितों की रक्षा के लिए, चीन के साथ संबंधों में सुधार किया जाना चाहिए, भले ही दोनों एशियाई देश मित्र राष्ट्र न बनें।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है, बहुध्रुवीय दुनिया में हमारे अपने देश के लाभ और हित के लिए, हमारे लिए वास्तव में मित्र राष्ट्र बने बिना चीन के साथ संबंधों में सुधार करना और इसे किसी तरह के संतुलित, सामान्य तरीके से स्थापित करना आवश्यक है।’’
करात ने कहा कि राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का कार्यकाल भारत के लिए कुछ अवसर भी ला सकता है और हमें हमारी स्थिति को मजबूत करने के लिए रणनीतिक स्वायत्तता का उपयोग करना चाहिए।
भाषा वैभव