एआईएमपीएलबी ने नए वक्फ कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया
आशीष वैभव
- 07 Apr 2025, 04:54 PM
- Updated: 04:54 PM
नयी दिल्ली, सात अप्रैल (भाषा) ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।
इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने इस मुद्दे पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नेता असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद तथा आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक अमानतुल्ला खान सहित अन्य की याचिका पर विचार करने और उसे तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को शनिवार को अपनी मंजूरी दे दी जिसे संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया था।
एआईएमपीएलबी ने छह अप्रैल को शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी।
एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने एक बयान में कहा कि याचिका में संसद द्वारा पारित संशोधनों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा गया है कि ये ‘‘मनमाने, भेदभावपूर्ण और बहिष्कार पर आधारित’’ हैं।
इसमें कहा गया है कि संशोधनों से न केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, बल्कि इससे सरकार की वक्फ के प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखने की मंशा भी स्पष्ट हो गई है, जिससे मुस्लिम अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक निधियों के प्रबंधन से वंचित किया जा रहा है।
एआईएमपीएलबी ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 अंतःकरण की स्वतंत्रता या विचारों को मानने की आजादी, धर्म का पालन करने, उसका प्रचार करने तथा धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थाओं की स्थापना और प्रबंधन का अधिकार सुनिश्चित करते हैं। बयान में कहा गया है कि नया कानून मुसलमानों को इन मौलिक अधिकारों से वंचित करता है।
बयान में कहा गया, ‘‘केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड के सदस्यों के चयन के संबंध में संशोधन अधिकारों से वंचित किए जाने का स्पष्ट प्रमाण है। इसके अतिरिक्त, वक्फ (दाता) के लिए पांच साल की अवधि के लिए एक ‘प्रैक्टिसिंग’ मुस्लिम होना आवश्यक है, जो भारतीय कानूनी ढांचे और संविधान के अनुच्छेद 14 और 25, साथ ही इस्लामी शरिया सिद्धांतों के विपरीत है।’’
बयान में कानून को भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 के साथ असंगत बताते हुए कहा गया कि अन्य धार्मिक समुदायों हिंदू, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध को दिए गए अधिकार और सुरक्षा से मुस्लिम वक्फ, औकाफ को वंचित किया गया है।
एआईएमपीएलबी ने कहा कि शीर्ष अदालत को ‘‘संवैधानिक अधिकारों का संरक्षक’’ होने के नाते इन ‘‘विवादास्पद संशोधनों को रद्द करना चाहिए, संविधान की गरिमा बनाए रखनी चाहिए’’ और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों को ‘‘कुचलने’’ से बचाना चाहिए।
भाषा आशीष