‘रेंस डोंट मेक अस हैपी एनिमोर’ में एक संस्कृति के मरने व उसकी कहानियों को दिखाना चाहता था: निर्देशक
सुरभि अविनाश
- 09 Apr 2025, 09:10 PM
- Updated: 09:10 PM
(बेदिका)
नयी दिल्ली, नौ अप्रैल (भाषा) निर्देशक यशस्वी जुयाल की लघु डॉक्यूमेंट्री ‘रेंस डोंट मेक अस हैपी एनिमोर’ की शुरुआत एक आदिवासी लड़के और उसकी प्रेमिका के बीच काल्पनिक बातचीत से होती है जिसमें वे उत्तराखंड के अपने गांव लोहारी के बारे में मिथकों और कहानियों को साझा करते हैं, जो एक पनबिजली परियोजना के कारण पानी में डूब गया है।
इस फिल्म का प्रीमियर बृहस्पतिवार को स्विट्जरलैंड के न्योन में प्रतिष्ठित ‘विजन डू रील इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में होगा। जुयाल उसी क्षेत्र से आते हैं और वहां विस्थापन और प्रवासन को शिद्दत से महसूस करते हैं।
जुयाल की 27 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री में यथार्थवाद का स्पर्श है। जुयाल ने कहा कि गांव और कहानियां वास्तविक हैं।
फिल्म निर्माता ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ साक्षात्कार में कहा, ‘‘यह एक संस्कृति, इसकी कहानियों और बहुत सारे सामुदायिक अनुभवों की मृत्यु है क्योंकि यह गांव अब अस्तित्व में नहीं है... हमने ऊपरी हिमालय, विशेष रूप से गढ़वाल क्षेत्र में पारिस्थितिक असंतुलन के बारे में कहानियां सुनी हैं। मैं हमेशा देखता हूं कि ऊपरी हिमालय में क्या हो रहा है।’’
व्यासी बांध के निर्माण के कारण लोहारी सबसे बुरी तरह प्रभावित गांवों में से एक था, जो व्यासी पनबिजली परियोजना का हिस्सा है। इस परियोजना को मूल रूप से 1972 में प्रस्तावित किया गया था। लोहारी के ग्रामीणों ने कई विरोध प्रदर्शन किए, जिनके बारे में 2022 में मीडिया में व्यापक रूप से रिपोर्ट की गई।
फिल्म निर्माण के गुर खुद सीखने वाले जुयाल ने कहा कि इस विशेष कहानी को तलाशने का विचार उन्हें उनके निर्माता शरद मेहरा के माध्यम से आया। मेहरा ने उन्हें अपने एक मित्र प्रोफेसर अत्री नौटियाल से मिलवाया, जिन्होंने विस्थापन और प्रवासन के संबंध में व्यापक अध्ययन किया है।
जुयाल ने कहा, ‘‘...उस पर्वतीय क्षेत्र के ठीक पीछे मसूरी है, जो पहाड़ों से जुड़ा एक रोमांटिक पर्यटन स्थल है और फिर उनका गांव (लोहारी) इस (बांध) की वजह से बर्बाद हो गया। वहां एक और बड़ी परियोजना पर काम जारी है।’’
जुयाल ने बताया कि उनका परिवार मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल से है, जिसका टिहरी बांध परियोजना के कारण विस्थापन का अपना इतिहास है। वह प्रवास के कारण ऊपरी हिमालय में वीरान गांवों के बारे में कहानियां सुनते हुए बड़े हुए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए मैं हमेशा उस जगह से जुड़ा रहा हूं।’’
जादुई यथार्थवाद के नजरिए से डॉक्यूमेंट्री को देखने का विचार आंशिक रूप से इस शैली के प्रति उनके आकर्षण और उत्तराखंड की संस्कृति से प्रेरित था।
जुयाल वर्तमान में अपनी पहली फीचर फिल्म ‘इंक-स्टेंड हैंड एंड द मिसिंग थम्ब’ पर काम कर रहे हैं, जो एक प्रवासी श्रमिक पर आधारित है। इसे हांगकांग अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के एशिया फिल्म फाइनेंसिंग फोरम (एचएएफ) में 15 फिल्मों में से चुना गया है।
भाषा सुरभि