गुरु दत्त की विरासत कोई शैली नहीं, जिसकी आप नकल कर सके : महेश भट्ट
गोला माधव
- 07 Jul 2025, 04:57 PM
- Updated: 04:57 PM
(कोमल पंचमटिया)
मुंबई, सात जुलाई (भाषा) फिल्मकार महेश भट्ट ने फिल्म निर्देशक दिवंगत गुरु दत्त के बारे में कहा कि उनकी विरासत पुरस्कारों की नहीं है और उन्होंने जीवन की व्यथा को ऐसी कविता में बदल दिया जो खामोशी को भी चीर दे।
भारतीय सिनेमा के महान फिल्मकारों में गिने जाने वाले गुरु दत्त ने “प्यासा”, “कागज के फूल” और “साहिब बीबी और गुलाम” जैसी कालजयी फिल्में बनाई थीं। नौ जुलाई को उनकी 100वीं जयंती है। 1964 में मात्र 39 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था। ऐसा माना जाता है कि नींद की गोलियों और शराब पीने के कारण उनका निधन हो गया था।
महेश भट्ट ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘उन्होंने जीवन की व्यथा को कविता में बदल दिया, ऐसी कविता जो खामोशी को भी चीर दे। जो उनके बाद आए, वे उस घाव को साथ लेकर चले। हम गुरु दत्त के सौ वर्ष पूरे होने का जश्न नहीं मनाते। हम उनकी विरासत की ओर लौटते हैं।’’
भट्ट ने याद किया कि जब उन्होंने पहली बार राज खोसला के दफ्तर में गुरु दत्त की एक बड़ी तस्वीर देखी, तो वह मंत्रमुग्ध हो गए थे।
फिल्मकार ने कहा, ‘‘गुरु दत्त की विरासत पुरस्कारों, पोस्टर या रील से नहीं बनी है। वह खामोशी से बनी है। ऐसी खामोशी जो जब कमरे में प्रवेश करती है और स्क्रीन के काले होने पर (पिक्चर खत्म होने पर), वहीं ठहर जाती है। वह हमारे ‘व्यास’ (महाभारत लिखने वाले ऋषि) थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘गुरु दत्त ने अपनी निजी वेदना को काव्यात्मक आकार दिया। उन्होंने अपने पात्रों को करुणा और अंतर्विरोध से रोशन किया। उन्होंने अपने भीतर के कवि को उग्र होने दिया। उन्होंने स्त्रियों के हृदय को छूआ। उन्होंने सुंदरता को सच्चाई में ढलने दिया। ‘कागज के फूल’ का वह अमर गीत ‘वक्त ने किया’, एक धड़कता हुआ घाव है। उनकी विरासत कोई शैली नहीं है जिसकी नकल की जा सके। यह एक ऐसा घाव है जिसे बस सहन करना पड़ता है।’’
भट्ट ने कहा कि जब वह अपनी 1982 की चर्चित फिल्म ‘‘अर्थ’’ पर काम कर रहे थे, तब कवि-गीतकार कैफ़ी आजमी ने यह टिप्पणी की थी कि उन्होंने खोसला के शागिर्द होने के नाते गुरु दत्त का दर्द विरासत में पाया है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम ‘अर्थ’ के एक गाने पर काम कर रहे थे। जगजीत सिंह ‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो’ की शुरुआती धुन बना रहे थे। कैफ़ी साहब चुपचाप बैठे थे, वे सिर्फ़ धुन ही नहीं सुन रहे थे, बल्कि उसके पीछे छिपे जख्म को भी महसूस कर रहे थे। फिर उन्होंने अपनी बेमिसाल नर्म आवाज़ में मुझसे कहा : ‘तुमने गुरु दत्त का दर्द विरासत में पाया है। दर्द ही तुम्हारी धरोहर है।’’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं राज खोसला का सहायक रहा था और राज खोसला गुरु दत्त के सहायक थे। यही थी वह रेखा, शोहरत की नहीं, बल्कि बल्कि पीड़ा की। जैसे जख्म पीढ़ी दर पीढ़ी किसी पवित्र धरोहर की तरह सौंपे जाते हैं। कैफ़ी साहब सही थे।”
छियत्तर वर्षीय लेखक-निर्देशक महेश भट्ट ने कहा कि उन्होंने उस जख्म को अपने काम में भी दर्शाया है।
भट्ट ने कहा, ‘‘गुरु दत्त को दोहराया नहीं जा सकता। कुछ फिल्म निर्माता हैं जिनमें सच्चाई दिखाने की वैसी ही भूख दिखती है, जैसे संजय लीला भंसाली, जिनमें काव्यात्मक दृश्यों को दर्शाने का जुनून है। विशाल भारद्वाज, जो संगीत और कविता के जरिए दर्द को टटोलने का साहस रखते हैं। अनुराग कश्यप, जब वह अंधेरे को बिना किसी परदे के बोलने देते हैं और मोहित सूरी, जो ख़ामोशियों को सुनते हैं और अपने संगीत के माध्यम से अनदेखे पहलुओं को केंद्र में रखते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ये फिल्मकार भले ही अलग-अलग रास्तों पर चलें, लेकिन गुरु दत्त की तरह ये समझते हैं कि जब सिनेमा गहराई से महसूस करने की हिम्मत करता है, तो वह गतिशील कविता बन जाता है और शायद यही वो लौ है जो आज भी जल रही है।’’
भाषा गोला