गुरुदत्त की 100वीं जयंती: देवी दत्त ने अपने भाई और गुरु को किया याद
जितेंद्र माधव
- 09 Jul 2025, 05:27 PM
- Updated: 05:27 PM
(कोमल पंचमटिया)
मुंबई, नौ जुलाई (भाषा) गुरुदत्त का मिजाज फिल्मों के सेट पर चुटकियों में बदल जाया करता था लेकिन वह लोगों का दिल जीतने में भी माहिर थे। देवीदत्त ने अपने बड़े भाई गुरुदत्त की 100वीं जयंती पर उन दिनों के किस्सों को याद करते हुए यह बात कही।
देवीदत्त अपने भाई के हर पहलू, हर मिजाज से वाकिफ थे। गुरुदत्त ने भारतीय सिनेमा को ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ जैसी कई बेहतरीन फिल्में दी हैं।
देवीदत्त ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “वह (गुरुदत्त) बेहद प्यारे मनुष्य थे। उन्हें बहुत गुस्सा आता था। उनके दिल में जो भी होता था, वह बोल देते थे लेकिन कुछ ही क्षणों में वह दूसरे व्यक्ति को यह अहसास दिला देते थे कि कुछ गलत हुआ ही न हो। वह लोगों का दिल जीतने में माहिर थे।”
देवीदत्त ने बताया कि उन्होंने अपनी शादी वाले दिन गुरुदत्त की उपहार में दी गयी घड़ी को अपने पास संभाल कर रखा हुआ है।
उन्होंने बताया, “मैंने अब भी उनकी दी हुई घड़ी को संभाल के रखा हुआ है लेकिन मैं उसे अब नहीं पहनता हूं।”
गुरुदत्त का 1964 में 39 वर्ष की आयु में निधन हुआ था और उस समय वह देवीदत्त से 13 वर्ष बड़े थे।
देवीदत्त ने बताया, “वह (गुरु) मेरे साथ बच्चों की तरह व्यवहार करते थे। वह मुझसे 13 वर्ष बड़े थे। वह सबके सामने मेरी बेइज्जती करते थे इसलिए मैं बहुत रोता था। मैं अपनी मां से कहता था कि मेरा भाई कैसा है?”
उन्होंने कहा, “जब मेरी मां उनसे पूछती थी तब वह कहते थे कि मैं ऐसा इसलिए करता हूं क्योंकि यह मेरा भाई है और इसे अच्छा निर्माता बनना है।”
देवीदत्त ने ‘आर-पार’, ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’, ‘सीआईडी’, ‘सैलाब’, ‘कागज के फूल’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘साहिब बीबी और गुलाम’ और ‘बहारें फिर भी आएंगी’ जैसी फिल्मों में बतौर प्रोडक्शन मैनेजर काम किया था।
यह पूछने पर कि क्या गुरुदत्त दूसरों के विचारों और सुझावों को स्वीकार करते थे, देवीदत्त ने कहा कि उन्होंने अपने भाई के सामने कभी बोलने की हिम्मत नहीं जुटाई।
उन्होंने कहा, “मैं उनसे दूर रहता था क्योंकि मुझे डर था कि वह मुझ पर चिल्लाएंगे।”
देवीदत्त ने कहा, “जब भी वह (गुरुदत्त) मुझे आसपास नहीं देखते थे तो चिल्लाते थे, ‘देवी कहां हैं?”
उन्होंने मुझे फिल्म निर्माण के बारे में लगभग सब कुछ सिखाया।
देवीदत्त ने कहा, “शुरुआत में उन्होंने मुझे ‘साउंड’ विभाग में रखा फिर प्रोडक्शन में भेज दिया और फिर मैं स्टूडियो का प्रभारी बन गया। उन्हें मुझ पर बहुत भरोसा था।”
भाषा जितेंद्र