जापान में परमाणु बम हमले में जीवित बचे लोग परमाणु हथियारों के खिलाफ जागरूकता फैला रहे
एपी प्रीति सिम्मी मनीषा
- 05 Aug 2025, 10:56 AM
- Updated: 10:56 AM
हिरोशिमा, पांच अगस्त (एपी) हिरोशिमा और नागासाकी पर 80 साल पहले हुए परमाणु बम हमले में जीवित बचे लोगों ने बढ़ते परमाणु खतरों और वैश्विक नेताओं द्वारा परमाणु हथियारों को स्वीकार किए जाने पर चिंता जताई है।
अमेरिका ने छह अगस्त, 1945 को हिरोशिमा पर और उसके तीन दिन बाद नागासाकी पर परमाणु बम से हमला किया था, जिससे उस वर्ष के अंत तक 2,00,000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे।
इस घातक हमले में कुछ लोग जीविच बच गए, लेकिन वे विकिरण संबंधी बीमारियों से ग्रस्त हो गए।
परमाणु बम हमले के लगभग एक लाख लोग अभी जीवित हैं। उनमें से कई लोगों ने खुद को और अपने परिवारों को आज तक जारी भेदभाव से बचाने के लिए अपने अनुभवों को छिपा रखा है जबकि कुछ लोग खुद के साथ हुई भयावह विभीषिका के चलते अपनी आपबीती नहीं बता पाए।
कुछ जीवित बचे लोगों ने अपने जीवन काल के अंतिम दिनों में परमाणु बम हमले के खिलाफ इस उम्मीद के साथ बोलना शुरू किया है, कि उनकी आपबीती सुन कर शायद दूसरे लोग परमाणु हथियारों के खात्मे के लिए दबाव बना सकें।
परमाणु बम हमले के पीड़ित 83 वर्षीय कुनिहिको आईडा अनेक स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद अपनी सेवानिवृत्ति के वर्षों में लोगों को अपनी पीड़ा बता रहे हैं, जिससे वे परमाणु निरस्त्रीकरण का समर्थन कर सकें।
स्वयंसेवक कुनिहिको आईडा हिरोशिमा के पीस मेमोरियल पार्क में एक गाइड के रूप में काम करते हैं। वह विदेशियों के बीच जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि विदेशियों को इस बमबारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।
आईडा को अपनी पीड़ा को सार्वजनिक करने में 60 वर्ष लग गये।
जब अमेरिका ने हिरोशिमा पर यूरेनियम बम गिराया तब आईडा विस्फोट के केंद्र से केवल 900 मीटर दूर थे। वह उस घर में थे जहां उनकी मां का बचपन बीता था।
आईडा ने बताया कि वह उस समय केवल तीन साल के थे। उन्हें धमाके की जोरदार आवाज अब भी याद है। ऐसा लगा जैसे उन्हें किसी इमारत से बाहर फेंक दिया गया हो। वह मलबे के नीचे दब गए थे। उनके पूरे शरीर से, टूटे कांच के टुकड़ों की वजह से खून बह रहा था।
हमले को याद करते हुए आईडा ने कहा कि उन्होंने मदद के लिए चीखने की कोशिश की, लेकिन उनकी आवाज़ नहीं निकली। उनके नाना ने उन्हें बचाया था।
उन्होंने बताया कि हमले के एक महीने के भीतर उसकी 25 वर्षीय मां और चार वर्षीय बहन की नाक से खून बहने, त्वचा संबंधी समस्याओं और थकान के कारण मृत्यु हो गई।
आईडा पर भी प्राथमिक विद्यालय की शिक्षा तक विकिरण के ऐसे ही प्रभाव पड़े, हालांकि फिर धीरे-धीरे उनकी सेहत में सुधार हुआ।
जब उन्होंने अपनी कहानी सुनाने का फैसला किया, तो उनके लिए यह आसान नहीं था। उन्हें सार्वजनिक रूप से बोलने में कई साल लग गए।
परमाणु बम हमले में जीवित बचीं 86 वर्षीय फुमिको दोई बताती हैं कि जब यह हमला हुआ था तब वह छह साल की थीं। उस दौरान वह एक स्टेशन पर खड़ी थीं।
उन्होंने बताया कि सड़क पर लोगों के बाल जल गए थे। उनके चेहरे कोयले की तरह काले पड़ गए थे और उनके कपड़े फटे हुए थे।
दोई ने अपने बच्चों को इस अनुभव के बारे में बताया, लेकिन भेदभाव के डर से उन्होंने लंबे समय तक इसे छिपाए रखा था। उन्होंने परमाणु हमले में जीवित बचे एक व्यक्ति से विवाह किया। उन्हें आशंका थी कि कहीं उनके चारों बच्चों को विकिरण के दुष्प्रभाव न हों। उनकी मां और दो भाई कैंसर से जान गंवा चुके हैं और दो बहनें बीमार ही रहती हैं।
उन्होंने 2011 में फुकुशिमा दाइचि परमाणु दुर्घटना के बाद इस बारे में बोलना शुरू किया। उन्होंने कहा, “यह दुखद है कि कुछ लोग परमाणु बम हमलों के बारे में भूल गए हैं...।’’
दोई ने कहा कि कुछ देश अभी भी ऐसे परमाणु हथियार रखते हैं और इन्हें तैयार कर रहे हैं जो 80 साल पहले इस्तेमाल किए गए हथियारों से भी अधिक शक्तिशाली हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर जापान पर एक भी हमला हुआ तो हम तबाह हो जाएंगे। अगर दुनिया भर में और हमले हुए तो धरती का अंत हो जाएगा। इसलिए जब भी मुझे मौका मिलता है तो मैं इस बारे में अपनी बात रखती हूं। ’’
वर्ष 2023 में हिरोशिमा में हुए जी7 शिखर सम्मेलन और पिछले वर्ष परमाणु हमले के पीड़ितों के समूह ‘निहोन हिदानक्यो’ को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद हिरोशिमा और नागासाकी के शांति संग्रहालयों में आने वाले दर्शकों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। इनमें अब लगभग एक-तिहाई विदेशी आते हैं।
हिरोशिमा के शांति संग्रहालयों में ज़्यादातर विदेशी लोग आते हैं।
अमेरिका की सामंथा ऐनी ने कहा कि वह चाहती हैं कि वह अपने बच्चों को परमाणु बम हमले के बारे में समझा सकें।
ऐनी ने कहा, “यह हमें याद दिलाता है कि एक निर्णय कितना विनाशकारी हो सकता है।”
एपी प्रीति सिम्मी