बंगाली पुरोहितों और ढाकियों को इस त्योहारी मौसम में अन्य राज्यों में जाने में लग रहा है डर
राजकुमार माधव
- 01 Sep 2025, 04:50 PM
- Updated: 04:50 PM
कोलकाता, एक सितम्बर (भाषा) त्योहारों का मौसम कभी बंगाल के ढाकियों और पुरोहितों के लिए आवागमन, प्रसन्नता एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान का अवसर होता था, लेकिन अब उन्हें इस समय डर लग रहा है।
दुर्गा पूजा से पहले ढाक (ढोल) की ध्वनि गांवों में गूंजने लगती है। बंगाल की परंपराओं के संरक्षक - पुजारी और ढोल वादक - कहते हैं कि भाजपा शासित राज्यों में पहचान देखकर किया जाने वाला उत्पीड़न, भाषाई पूर्वाग्रह और कथित प्रशासनिक जांच के डर से उन्हें अन्य प्रांतों की यात्रा करने में डर लग रहा है।
महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली और राजस्थान में बांग्ला भाषी प्रवासियों को कथित तौर पर परेशान किये जाने की खबरों ने उत्सव के इस मौसम पर गहरा असर डाला है।
सैकड़ों ढाकियों (पारंपरिक ढोल वादकों) और पुरोहितों (पुजारियों) के सामने दो ही विकल्प हैं: आजीविका के लिए अपमान सहना या आर्थिक अनिश्चितता में यहीं रहना।
ग्रामीण बंगाल में, जहां ढाकी की लयबद्ध थाप आमतौर पर त्योहारों की खुशियों का दस्तक मानी जाती है, किंतु इस साल माहौल में त्योहार के माहौल पर आशंका का साया नजर आ रहा है।
एक ढाकी टोली के निदेशक बापी दास ने कहा, ‘‘जब हम दूसरे राज्यों में बंगाली प्रवासी मजदूरों पर अत्याचारों के बारे में सुनते हैं, तो हमें और हमारे परिवारों को डर लगता है। हमें दूसरे राज्यों की विभिन्न पूजा समितियों से कई निमंत्रण मिले हैं। चूंकि हमें पहले ही अग्रिम राशि मिल चुकी है, इसलिए हम आशंकाओं के बावजूद यात्रा करेंगे। हालांकि, मेरे कुछ साथी दुविधा में हैं कि जाएं या यहीं रहें।’’
लगभग 100 कुशल ढोल वादकों वाली दास की मंडली को दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई और गुवाहाटी के आयोजकों से निमंत्रण मिले हैं।
दुर्गा पूजा के लगभग एक सप्ताह तक चलने वाले इस कार्य हर व्यक्ति 20,000-25,000 रुपये की कमाई हो जाती है जो मौसमी आय पर निर्भर परिवारों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
उत्तर 24 परगना के अशोकनगर में एक अन्य ढाकी मंडली की एक अनुभवी महिला ढाकी ने कहा, ‘‘राज्य के बाहर प्रदर्शन करने से हमें अपने बच्चों के लिए कपड़े, किताबें खरीदने और यहां तक कि कर्ज चुकाने में भी मदद मिलती है।’’
यह महिला अन्य समय में बीड़ी बनाकर कमाई करती है।
उसने कहा, ‘‘लेकिन अब, मुझे भय है कि क्या मुझे बांग्ला बोलने के लिए रोका जाएगा या परेशान किया जाएगा?’’
उनकी सहयोगी मिताली बरुई ने भी यही चिंता जताई। उसने कहा, ‘‘हम पहले खुशी-खुशी तैयारी करते थे। अब, अभ्यास भी तनावपूर्ण लगता है। हमें निर्देश दिया गया है कि जो भी हमारी मंडली से दूसरे राज्यों की यात्रा पर जाए, उसे अपने सभी पहचान पत्र, अपने माता-पिता के पहचान पत्रों की प्रतियों समेत अपना पहचान पत्र और जरूरत पड़ने पर संपत्ति के कागजात और स्थानीय पंचायत प्रमाण पत्र भी साथ रखने होंगे।’’
भाषा राजकुमार