पांडुलिपियों के ‘विशाल खजाने’ के संरक्षण व डिजिटलीकरण के लिए नयी दिल्ली घोषणापत्र अपनाया गया
पारुल पवनेश
- 13 Sep 2025, 09:14 PM
- Updated: 09:14 PM
(फाइल फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, 13 सितंबर (भाषा) भारत की पांडुलिपि विरासत पर आयोजित वैश्विक सम्मेलन ‘ज्ञान भारतम’ में शनिवार को इस बात पर जोर दिया गया कि पांडुलिपियां “केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शन करने वाली प्रकाश-पुंज हैं।”
विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन के आखिरी दिन पांडुलिपियों में निहित ज्ञान को सहेजने, उनका डिजिटलीकरण करने और उन्हें लोगों के बीच पहुंचाने तथा मूल कार्यों को भारत वापस लाने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए नयी दिल्ली घोषणापत्र अपनाया गया।
घोषणापत्र में “मूल पांडुलिपियों को स्वदेश लाने या विदेशों से उनकी डिजिटल प्रतियां हासिल करने तथा अनुसंधान एवं राष्ट्रीय गौरव के लिए उन तक पहुंच सुनिश्चित करने” का संकल्प लिया गया।
संस्कृति मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बड़ी संख्या में मौजूद विद्वानों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों के बीच नयी दिल्ली घोषणापत्र पढ़ा, जिसमें इस बात को रेखांकित किया गया है कि पांडुलिपियां “किसी राष्ट्र की जीवंत स्मृति और उसकी सभ्यतागत पहचान का आधार होती हैं।”
भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहां प्राचीन पांडुलिपियों का सबसे समृद्ध संग्रह है। इस संग्रह में लगभग एक करोड़ ग्रंथ शामिल हैं, जिनमें देश का पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत समाहित है।
‘ज्ञान भारतम’ सम्मेलन में अपनाए गए घोषणापत्र में कहा गया है, “हम इस विशाल खजाने को सहेजने, उसका डिजिटलीकरण करने और उसे लोगों के बीच पहुंचाने का संकल्प लेते हैं। हमारा दृढ़ विश्वास है कि पांडुलिपियां केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शन करने वाली प्रकाश-पुंज हैं।”
यह घोषणापत्र ज्ञान भारतम मिशन के तहत गठित आठ कार्य समूहों के अनुसार वर्गीकृत तीन दिनों के गहन तकनीकी सत्रों के बाद अपनाया गया।
इसमें कहा गया है, “हम पांडुलिपि संरक्षक... लिपि विशेषज्ञ... भारत की पांडुलिपि विरासत के बारे में सोचने वाले अन्य लोग..., जो ‘पांडुलिपि विरासत के माध्यम से भारत की ज्ञान विरासत को पुनः प्राप्त करना’ विषय पर यहां आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एकत्र हुए हैं, गहन विचार-विमर्श एवं मंथन के बाद यह घोषणा करने का संकल्प लेते हैं कि भारत दुनिया की सबसे समृद्ध और सबसे विविध पांडुलिपि विरासत की भूमि है, जो दर्शन, विज्ञान, साहित्य, कला, अध्यात्म और कई अन्य विषयों में हजारों वर्षों के ज्ञान को समाहित करती है।”
घोषणापत्र में कहा गया है कि ताड़ के पत्तों, सन्टी की छालों, कपड़ों, हस्तनिर्मित कागजों और अन्य ऐसी सामग्री पर लिखी गई ये पांडुलिपियां “एक राष्ट्र की जीवंत स्मृति और उसकी सभ्यतागत पहचान के आधार” का प्रतिनिधित्व करती हैं।
इसमें कहा गया है, “हम ‘विकसित भारत 2047’ की भावना के तहत ‘ज्ञान भारतम’ आंदोलन में शामिल होने और इस विशाल खजाने को सहेजने, उसका डिजिटलीकरण एवं प्रसार करने का संकल्प लेते हैं, ताकि यह दुनियाभर के नागरिकों और विद्वानों के लिए समान रूप से सुलभ हो सके।”
केंद्र सरकार ने संस्कृति मंत्रालय के तहत एक प्रमुख पहल के रूप में ज्ञान भारतम मिशन की शुरुआत की है। इसका मकसद देशभर के शैक्षणिक संस्थानों, संग्रहालयों, पुस्तकालयों और निजी संग्रहों में मौजूद एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेजीकरण, संरक्षण और डिजिटलीकरण करना तथा उनकी पहुंच सुलभ बनाना है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को ‘ज्ञान भारतम’ सम्मेलन में अपने संबोधन में कहा था, “ज्ञान भारतम मिशन भारत की संस्कृति, साहित्य और चेतना का उद्घोष बनने के लिए तैयार है।”
उन्होंने कहा था कि दुनियाभर के कई देशों में भारत की प्राचीन पांडुलिपियां मौजूद हैं और देश ज्ञान भारतम मिशन के तहत “मानवता की इस साझा विरासत को एकीकृत करने” का प्रयास करेगा।
सम्मेलन का उद्देश्य भारत में प्राचीन पांडुलिपियों के “सभी संरक्षकों का संघ” स्थापित करना और अंततः ‘ज्ञान भारतम’ के तत्वावधान में उनके संरक्षण एवं प्रसार के लिए एक देशव्यापी पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।
नयी दिल्ली घोषणापत्र में कहा गया है, “हमारा दृढ़ विश्वास है कि पांडुलिपियां केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शन करने वाली प्रकाश-पुंज हैं, जो विरासत को नवाचार से, परंपरा को प्रौद्योगिकियों से तथा ज्ञान को विकास से जोड़ती हैं।”
इसमें “सुव्यवस्थित प्रयासों के माध्यम से पांडुलिपियों का अध्ययन और पुनर्व्याख्या करने” तथा “मूल पांडुलिपियों को स्वदेश वापस लाने या विदेश से उनकी डिजिटल प्रतियां हासिल करने का संकल्प लिया गया, ताकि शोध और राष्ट्रीय गौरव के लिए उनकी पहुंच सुनिश्चित हो सके।”
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि यह घोषणापत्र के रूप में सन्निहित एक दृष्टिकोण मात्र है और अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कानूनी एवं अन्य ढांचों के तहत बहुत सारा काम करना होगा, जैसे कि किसी दूसरे देश में रखे गए शिलालेख की डिजिटल प्रति प्राप्त करना, जिसे संभवतः कई शताब्दियों पहले वहां से ले जाया गया होगा।
नयी दिल्ली घोषणापत्र में कहा गया है, “हम संकल्प लेते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं कि हम भारत की अमूल्य पांडुलिपि विरासत की रक्षा और संरक्षण के लिए मिलकर काम करेंगे, भारत को पांडुलिपियों का सबसे प्रमुख केंद्र बनाकर वैश्विक पहल करेंगे... ‘ज्ञान भारतम’ को ऐसा ‘जन आंदोलन’ बनाएंगे, जो सांस्कृतिक पहचान और ज्ञान-आधारित विकास को बल देगा।”
इसमें समुदायों के बीच एकता, विविधता और गहन सांस्कृतिक बंधन के प्रतीक के रूप में सभी क्षेत्रों की पांडुलिपियों का संरक्षण करके “प्रत्येक लिपि और भाषा को पोषित करने” का भी संकल्प लिया गया है।
घोषणापत्र में “भारत की पांडुलिपि परंपराओं” के प्रति सम्मान, जिज्ञासा और गौरव को प्रेरित करने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाने का भी आह्वान किया गया है। इसमें ज्ञान भारतम की भावना को बनाए रखने और भारत के लिखित ज्ञान की जीवंत परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए भावी पीढ़ियों को मार्गदर्शन प्रदान करने का संकल्प भी लिया गया है।
भाषा पारुल