पिछले 20 महीनों में फलस्तीन पर भारत की नीति शर्मनाक रही : कांग्रेस
शफीक पारुल
- 22 Sep 2025, 12:13 AM
- Updated: 12:13 AM
नयी दिल्ली, 21 सितंबर (भाषा) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन के फलस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की घोषणा करने के बाद, कांग्रेस ने रविवार को मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि फलस्तीन पर खास तौर पर पिछले 20 महीनों में भारत की नीति ‘‘शर्मनाक और नैतिक रूप से कायराना’’ रही है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन ने फलस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी है, और जल्द ही अन्य देशों के भी ऐसा करने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि भारत ने 18 नवंबर 1988 को ही फलस्तीनी राष्ट्र को औपचारिक रूप से मान्यता दे दी थी।
रमेश ने ‘एक्स’ पर इजराइल-हमास संघर्ष का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा, ‘‘लेकिन फलस्तीन के संबंध में भारत की नीति-खासकर पिछले 20 महीनों में-शर्मनाक और नैतिक रूप से कायरना रही है।’’
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने भी इस बात का उल्लेख किया कि भारत नवंबर 1988 में फलस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाले दुनिया के पहले कुछ देशों में से एक था।
उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘उस समय और वास्तव में फलस्तीनी लोगों के वीरतापूर्ण संघर्ष के दौरान, हमने सही के पक्ष में खड़े होकर और अंतरराष्ट्रीय मंच पर मानवता और न्याय के मूल्यों को कायम रखकर दुनिया को रास्ता दिखाया।’’
प्रियंका ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन ने भी 37 साल की देरी से यही रास्ता अपनाया है।
कांग्रेस नेताओं की यह टिप्पणी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री केअर स्टॉर्मर के रविवार को इस बात की पुष्टि करने के बाद आई है कि अमेरिका और इजराइल के कड़े विरोध के बावजूद ब्रिटेन फलस्तीनी राष्ट्र को औपचारिक रूप से मान्यता दे रहा है।
मीडिया में आई खबरों के अनुसार, स्टॉर्मर ने यह घोषणा कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की घोषणाओं के बाद की, जो राष्ट्रमंडल देशों की समन्वित पहल प्रतीत होती है।
कांग्रेस ने पिछले महीने कहा था कि वह ‘‘इजराइल की अस्वीकार्य कार्रवाइयों’’ पर मोदी सरकार की ‘‘चुप्पी की कड़ी निंदा’’ करती है।
अगस्त में भी, कांग्रेस नेता प्रियंका ने आरोप लगाया था कि इजराइल ‘‘नरसंहार’’ कर रहा है और भारत सरकार की इस बात के लिए आलोचना की थी कि जब इजराइल, फलस्तीन के लोगों को ‘‘तबाह’’ कर रहा है, तो वह ‘‘चुप’’ है।
इस महीने की शुरुआत में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था, जिसमें 'न्यूयॉर्क घोषणापत्र' का समर्थन किया गया था। घोषणापत्र में द्विराष्ट्र समाधान के माध्यम से फलस्तीन मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया गया था।
भाषा
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