न्यायालय ने बार कोटे में जिला न्यायाधीश के लिए न्यायिक अधिकारियों की पात्रता पर सुनवाई शुरू की
गोला माधव
- 23 Sep 2025, 01:36 PM
- Updated: 01:36 PM
नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर सुनवाई शुरू की कि क्या उन न्यायिक अधिकारियों को बार के लिए निर्धारित रिक्तियों के तहत जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, जिन्होंने पीठ में शामिल होने से पहले सात वर्ष तक वकालत कर ली हो।
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, न्यायमूर्ति एससी शर्मा तथा न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने देश भर में न्यायिक भर्ती पर व्यापक प्रभाव डालने वाली 30 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है।
पीठ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 233 की व्याख्या से जुड़े प्रश्नों पर सुनवाई कर रही है।
अनुच्छेद 233 के अनुसार, ‘‘किसी भी राज्य में जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदस्थापन और पदोन्नति राज्यपाल द्वारा उस राज्य के उच्च न्यायालय से परामर्श कर की जाएगी।’’
इसमें यह भी कहा गया है, ‘‘कोई व्यक्ति जो पहले से ही संघ या राज्य की सेवा में नहीं है, वह तभी जिला न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के लिए पात्र होगा जब वह कम से कम सात वर्षों तक अधिवक्ता या वकील रहा हो और उच्च न्यायालय द्वारा उसकी नियुक्ति की अनुशंसा की गई हो।’’
दिवानी न्यायाधीशों को जिला न्यायाधीश पदों के लिए प्रत्यक्ष भर्ती परीक्षाओं में भाग लेने से रोक दिया गया है। इन न्यायाधीशों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने अपनी दलीलें रखनी शुरू कीं।
उन्होंने कहा कि अधीनस्थ न्यायपालिका में शामिल होने से पहले सात वर्ष तक वकालत करने के बावजूद कई न्यायिक अधिकारियों को बार कोटे के तहत आवेदन करने से रोक दिया गया।
पूर्व में दिए गए फैसलों के आधार पर विभिन्न उच्च न्यायालयों में उनकी याचिकाएं खारिज कर दी गयी थीं।
भूषण ने तर्क दिया कि ‘‘यह मुद्दा अब अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक व्याख्या के प्रश्न में बदल गया है।’’
विचारणीय चार प्रमुख प्रश्नों का उल्लेख करते हुए भूषण ने कहा कि पहला मुद्दा यह है कि ‘‘क्या न्यायिक सेवा में आने से पहले बार में सात वर्ष तक वकालत करने वाला न्यायिक अधिकारी बार कोटे की रिक्तियों के तहत अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति का हकदार है।’’
दूसरे मुद्दे का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘क्या जिला न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए पात्रता का आकलन आवेदन, नियुक्ति या दोनों के स्तर पर किया जाना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि तीसरा मुद्दा यह है कि क्या अनुच्छेद 233(2) संघ या राज्य की न्यायिक सेवाओं में पहले से ही सेवारत व्यक्तियों के लिए अलग पात्रता निर्धारित करता है।
उन्होंने चौथे प्रश्न के बारे में कहा, ‘‘क्या एक वकील और न्यायिक अधिकारी के रूप में सात वर्षों की संयुक्त अवधि किसी उम्मीदवार को जिला न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए योग्य बनाती है।’’
मामले में सुनवाई अभी जारी है।
इससे पहले, 12 सितंबर को सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि वह 23 सितंबर से सुनवाई शुरू करेगी और 25 सितंबर तक तीन दिन दलीलें सुनेगी।
पीठ ने कहा था कि वह इस अहम सवाल पर सुनवाई शुरू करेगी कि क्या कोई न्यायिक अधिकारी, जिसने किसी पीठ में शामिल होने से पहले ही बार में सात साल पूरे कर लिए हों, किसी रिक्ति के मद्देनजर अतिरिक्त जिला जज (एडीजे) बनने का हकदार है।
बहरहाल, प्रधान न्यायाधीश ने ऐसी व्याख्या के प्रति आगाह किया, जिससे ‘‘ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जहां केवल दो वर्ष का अनुभव रखने वाला व्यक्ति भी पात्र हो जाए।’’
उच्च न्यायिक सेवा के अंग के रूप में एडीजे के पद निचले न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति के माध्यम से भरे जाते हैं। ये पद वकीलों की सीधी भर्ती के माध्यम से भी भरे जाते हैं, जिनके पास बार में कम से कम सात वर्ष का अनुभव हो।
विचारणीय मुद्दा यह है कि क्या कोई निचली अदालत का न्यायिक अधिकारी भी वकीलों के लिए सीधी भर्ती कोटे के तहत एडीजे के पदों के लिए आवेदन कर सकता है और न्यायिक अधिकारी या वकील या दोनों के रूप में उसके सात वर्षों के अनुभव को गिना जा सकता है या नहीं।
भाषा
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