कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फिल्म टिकट की कीमत 200 रु तक सीमित करने के सरकारी आदेश पर रोक लगाई
सुरेश नरेश
- 23 Sep 2025, 04:38 PM
- Updated: 04:38 PM
बेंगलुरु, 23 सितंबर (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य में फिल्म के टिकट की अधिकतम कीमत 200 रुपये तय करने संबंधी आदेश के अमल पर मंगलवार को रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति रवि वी होसमानी ने मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया एवं अन्य हितधारकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक सिनेमा (विनियमन) (संशोधन) नियम- 2025 के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि सरकार ने टिकट की कीमतों की अधिकतम सीमा तय करने के लिए कर्नाटक सिनेमा (विनियमन) अधिनियम के तहत मनमाने ढंग से एक प्रावधान पेश किया है।
रोहतगी ने कहा, ‘‘अगर ग्राहक बेहतर सुविधाओं के लिए अधिक भुगतान करना चाहते हैं, तो 200 रुपये तय करने का आधार क्या है? एक समान सीमा लागू करने का कोई औचित्य नहीं है।’’
उन्होंने बताया कि 2017 में जारी इसी तरह के एक सरकारी आदेश को उच्च न्यायालय ने निलंबित कर दिया था और बाद में राज्य सरकार ने इसे वापस ले लिया था।
रोहतगी ने दलील दी कि कानून राज्य सरकार को टिकट की दरें तय करने का कोई अधिकार नहीं देता है और इस तरह का प्रतिबंध सिनेमा मालिकों के व्यवसाय के अधिकार को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।
उन्होंने यह भी कहा, ‘‘ऐसा निर्देश नहीं दिया जा सकता कि प्रत्येक टिकट की कीमत 200 रुपये होनी चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे यह आदेश नहीं दिया जा सकता कि सभी विमानन कंपनियों को इकोनॉमी क्लास के साथ ही उड़ान भरनी होगी।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता उदय होल्ला और ध्यान चिन्नप्पा ने इस याचिका का समर्थन करते हुए दलील दी कि नियम 55 में एक प्रावधान जोड़कर यह संशोधन लाया गया है, जो टिकट काउंटर से संबंधित है, न कि टिकट की कीमतों से।
चिन्नप्पा ने कहा कि यह संशोधन अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है, क्योंकि कीमतें तय करने का अधिकार स्पष्ट विधायी समर्थन से ही प्राप्त होना चाहिए।
एक अन्य थिएटर संचालक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डी. आर. रविशंकर ने दलील दी कि फिल्म टिकटों की कीमतें सिनेमा मालिकों और ग्राहकों के बीच एक निजी अनुबंध का मामला है।
उन्होंने कहा कि जब तक कानून में स्पष्ट रूप से इस तरह के विनियमन का प्रावधान नहीं है, सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रकार का कोई भी प्रतिबंध कानून से जुड़ा होना चाहिए और अनुभवजन्य आंकड़ों द्वारा समर्थित होना चाहिए। अन्यथा, यह अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत व्यवसाय करने के अधिकार का उल्लंघन करता है।’’
राज्य के निर्णय का बचाव करते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता इस्माइल जबीउल्ला ने दलील दी कि संशोधन जनहित में पेश किया गया था।
उन्होंने सात मार्च को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया द्वारा दिये गये बजट भाषण और उसके बाद जारी मसौदा अधिसूचना का हवाला दिया, जिस पर कुछ हितधारकों ने आपत्ति जताई थी।
उन्होंने सूची-2 की प्रविष्टि 33 का हवाला देते हुए दलील दी कि सिनेमाघरों को विनियमित करने का सरकार का अधिकार संविधान से प्राप्त है, जो राज्यों को थिएटर और मनोरंजन को विनियमित करने का अधिकार देता है।
कर्नाटक फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स (केएफसीसी) ने भी हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया, लेकिन अदालत ने कहा कि यह मामला जनहित याचिका नहीं है और संस्था को अपने अधिकार क्षेत्र का औचित्य सिद्ध करना होगा।
उच्च न्यायालय की अंतरिम रोक अगले आदेश तक लागू रहेगी।
भाषा सुरेश