पश्चिम एशिया में महत्वपूर्ण बदलाव ला रही हैं महिला पत्रकार और कार्यकर्ता
मनीषा वैभव
- 28 Oct 2025, 12:40 PM
- Updated: 12:40 PM
(फ़रीनाज़ बासमेची, ओटावा विश्वविद्यालय)
ओटावा, 28 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) पिछले महीने ईरान में ‘‘नारी, जीवन, स्वतंत्रता’’ आंदोलन की तीसरी वर्षगांठ मनाई गई। इस विद्रोह को इस्लामी गणराज्य की स्थापना के बाद से देश का सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन बताया गया है।
हालांकि, सत्तावादी शक्तियां और पितृसत्तात्मक व्यवस्थाएं दमन जारी रखे हुए हैं, लेकिन पश्चिम एशिया में महिला पत्रकारों ने रिपोर्टिंग और कार्यकर्ता की तरह सक्रियता को एक साथ जोड़ा है।
इनमें से कई तो ऐसे शासन के अधीन काम करती हैं जो असहमति को अपराध मानते हैं। उनके लिए, रिपोर्टिंग सिर्फ़ एक पेशा नहीं है, बल्कि यह प्रतिरोध के कार्यों से जुड़ी है।
क्षेत्र में मिस्र की लीना अतल्लाह जैसी पत्रकार सरकारी दमन के बावजूद खोजी पत्रकारिता करती हैं, और यमन की अफराह नासिर निर्वासन में रहते हुए भी अपनी आवाज़ बुलंद रखे हुए हैं। निसंदेह, ये पत्रकार परिवर्तन के उत्प्रेरक बनी हैं। वे अपने मंचों के माध्यम से हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज़ को सामने ला रही हैं, दमनकारी व्यवस्थाओं को चुनौती दे रही हैं और स्वतंत्रता-केन्द्रित आंदोलनों में समुदायों को संगठित कर रही हैं।
खतरे के बीच सच कहना
सोशल मीडिया और ब्लॉग के व्यापक रूप से उपलब्ध होने के बाद से महिला पत्रकार असमानता के प्रति जागरूकता फैलाने में अग्रणी रही हैं। वे मुख्यधारा के पुरुष-प्रधान और सरकार-नियंत्रित मीडिया से प्रतिस्पर्धा करते हुए सत्य को सामने लाने का कार्य कर रही हैं।
ईरानी पत्रकार मसीह अलीनेजाद द्वारा 2014 में शुरू किया गया ‘माय स्टेल्थी फ्रीडम’ आंदोलन इसका प्रमुख उदाहरण है। यह फेसबुक पेज महिलाओं की पहनावे की स्वतंत्रता के समर्थन में शुरू हुआ था, जिसने शीघ्र ही दस लाख से अधिक फॉलोअर जुटा लिए।
मई 2017 में इस आंदोलन ने ‘व्हाइट वेडनेसडे’’ अभियान शुरू किया, जिसमें महिलाओं को बुधवार के दिन सफेद स्कार्फ या अन्य प्रतीक पहनने के लिए प्रोत्साहित किया गया ताकि अनिवार्य हिजाब कानून का विरोध किया जा सके। बाद में यह अभियान ‘‘मार्चिंग विदाउट हिजाब’’ और ‘‘अवर कैमरा इज अवर वेपन’’ जैसे हैशटैग के माध्यम से विस्तृत हुआ।
अलीनेजाद के विदेश में रहने के दौरान, ईरानी सरकार ने उन पर दबाव बनाने के लिए उनके भाई को गिरफ्तार कर लिया था। इसके अतिरिक्त, अमेरिका में न्यूयॉर्क पुलिस ने उनके खिलाफ साजिश रचने के आरोप में दो व्यक्तियों को भी गिरफ्तार किया था।
लेबनान की स्वतंत्र पत्रकार लूना सफ़वान भ्रष्टाचार, लैंगिक हिंसा और विरोध प्रदर्शनों पर रिपोर्टिंग करती हैं। उन्हें हिज़्बुल्लाह और लैंगिक असमानता पर की गई रिपोर्टिंग के लिए समन्वित ऑनलाइन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। 2021 में उन्होंने और छह अन्य महिलाओं ने एक सामाजिक कार्यकर्ता पर यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगाए, जिसके बाद उन्हें मानहानि के मुकदमों का सामना करना पड़ा।
मिस्र की लीना अतल्लाह ‘मदा मस्र’ नामक स्वतंत्र समाचार मंच की संपादक हैं। उन्हें सरकारी भ्रष्टाचार और महिला अधिकारों पर रिपोर्टिंग के कारण कई बार हिरासत में लिया गया। इसके बावजूद वह प्रेस स्वतंत्रता और डिजिटल सुरक्षा के पक्ष में सक्रिय बनी हुई हैं।
यमन की पुरस्कृत पत्रकार अफराह नासिर को युद्ध के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन और लैंगिक हिंसा की रिपोर्टिंग के बाद निर्वासन में जाना पड़ा। अब वह ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ से जुड़ी हैं और युद्ध अपराधों के पीड़ित लोगों के लिए न्याय की मांग करती हैं।
सीरिया की यारा बादेर ‘सीरियन सेंटर फॉर मीडिया एंड फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन’ का नेतृत्व करती हैं। उन्होंने सरकारी दमन, हिरासत और मीडिया पर नियंत्रण का खुलासा किया है। गिरफ्तारी और निर्वासन झेलने के बावजूद वह प्रेस स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा की वकालत करती हैं।
ट्यूनीशिया की पत्रकार लीना बिन मिहनी ने ‘ए ट्यूनीशियन गर्ल’ ब्लॉग के माध्यम से अरब स्प्रिंग के दौरान ग्रामीण और उपेक्षित इलाकों की रिपोर्टिंग की तथा पुलिस हिंसा और सरकारी दमन को उजागर किया। बाद में वह मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की समर्थक बनीं।
फ़लस्तीनी पत्रकार बिसान औदा ने 2023 से अपने इंस्टाग्राम मंच के ज़रिए वैश्विक एकजुटता की अपील की है। औदा, हिंद खोदरी और यूमना अल-सैयद जैसी पत्रकारों की रिपोर्टिंग ने विश्वभर में प्रदर्शनों को प्रेरित किया जिनमें 2024 में विश्वविद्यालय के परिसरों में वैश्विक हड़ताल भी शामिल हैं। हाल में अगस्त 2025 में हुई वैश्विक हड़ताल भी इसमें शामिल है।
डिजिटल माध्यमों से नई कथा गढ़ना
पश्चिम एशिया की महिला पत्रकार लंबे समय से संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में भी ज़मीनी हकीकत को सामने ला रही हैं। उदाहरण के तौर पर, अल जज़ीरा की वरिष्ठ संवाददाता शिरीन अबू अकलेह की जेनिन में एक सैन्य अभियान के दौरान इज़राइली सैनिक की गोली लगने से मौत हो गई थी, जबकि वह ‘प्रेस’ जैकेट पहने हुए थीं।
सोशल मीडिया और ब्लॉगिंग ने इन पत्रकारों को प्रतिरोध का सशक्त मंच प्रदान किया है। पितृसत्तात्मक सत्ता ढांचों और औपनिवेशिक प्रभावों के बीच दोहरी चुनौती का सामना करने के बावजूद वे बराबरी और न्याय के लिए डटी हुई हैं।
मानवाधिकारों के लगातार खतरे में रहने वाली दुनिया में, पश्चिम एशियाई महिला पत्रकार दृढ़ता और साहस की मिसाल हैं। वे न केवल लैंगिक हिंसा और असमानता के विरुद्ध संघर्ष कर रही हैं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की दिशा में नई कथाएं भी गढ़ रही हैं।
कई देशों में, जहां सरकारी मीडिया केवल सत्ता के पक्ष में काम करता है, वहीं नारीवादी पत्रकार सोशल मीडिया जैसे खुले मंचों का उपयोग कर जागरूकता और सुधार के लिए जगह बना रही हैं। ये पत्रकार महिलाओं को केवल पीड़ित के रूप में नहीं, बल्कि परिवर्तन के सक्रिय वाहक के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं, जो अन्याय को उजागर करते हुए समानता के लिए आंदोलनों को आगे बढ़ा रही हैं।
(द कन्वरसेशन)
मनीषा