दिल्ली की अदालत ने सीजीएचएस भूमि आवंटन घोटाले में पूर्व आईएएस, 10 अन्य को बरी किया
तान्या पवनेश
- 31 Oct 2025, 08:41 PM
- Updated: 08:41 PM
नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने सहकारी समूह आवास समिति (सीजीएचएस) को फिर से शुरू करने से जुड़े कथित जालसाजी और भ्रष्टाचार के मामले में एक पूर्व आईएएस अधिकारी समेत 10 अन्य को बरी कर दिया।
जिला न्यायाधीश जगदीश कुमार 2007 में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दायर उस मामले में सुनवाई कर रहे थे, जिसमें जिसमें सहकारी समितियों के पूर्व रजिस्ट्रार (आरसीएस) नारायण दिवाकर और 10 अन्य पर धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश सहित विभिन्न आरोप लगाए गए थे।
दिवाकर पर जाली दस्तावेज के आधार पर उक्त सोसायटी को फिर से शुरू करने के आरोप में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत भी मामला दर्ज किया गया था।
यह मामला दिल्ली में 4,000 करोड़ रुपये के सहकारी समूह आवास सोसायटी (सीजीएचएस) घोटाले से संबंधित है, जिसमें दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से अवैध रूप से सब्सिडी वाली भूमि प्राप्त करने के लिए निष्क्रिय सोसायटी को धोखाधड़ी से फिर से शुरू किया गया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय के 2006 के आदेश के आधार पर सीबीआई ने ‘लॉर्ड्स कोऑपरेटिव ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी’ नामक समिति की जांच की।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपितों ने समिति को अवैध रूप से फिर से शुरू करने के लिए आपराधिक साज़िश रची।
अदालत ने 31 अक्टूबर को जारी 200 पृष्ठों के आदेश में कहा, "आरोपितों के खिलाफ प्रस्तुत साक्ष्य पर्याप्त नहीं हैं ताकि शक की संभावना से परे उनकी दोषसिद्धि हो सके।"
पूर्व आईएएस अधिकारी के खिलाफ आरोपों के बारे में अदालत ने कहा, "नारायण दिवाकर के खिलाफ जांच एजेंसी द्वारा कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सबूत रिकॉर्ड में नहीं लाया गया है। इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि वह किसी भी आरोपी के साथ मिले हुए थे।"
इसमें कहा गया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उन्हें सोसायटी को फिर से शुरू करने की प्रक्रिया में किसी सह-आरोपी या अन्य किसी से कोई मौद्रिक लाभ मिला हो।
अदालत ने कहा कि दिवाकर ने सोसायटी को फिर से शुरू करने का आदेश इस शर्त पर पारित किया है कि निर्धारित समय के भीतर प्रबंधन का ऑडिट और चुनाव किया जाएगा और उन्होंने एक चुनाव अधिकारी भी नियुक्त किया है।
इसमें कहा गया कि सोसायटी को फिर से शुरू करने के खिलाफ किसी को कोई आपत्ति नहीं थी, और इसकी कार्यवाही दिल्ली सहकारी सोसायटी (डीसीएस) अधिनियम के तहत की गई थी।
अदालत ने उन्हें बरी करते हुए कहा, "आरोपी नारायण दिवाकर ने संबंधित लोक सेवकों, जिन्हें डीसीएस अधिनियम के तहत यह कार्य सौंपा गया था, द्वारा दर्ज की गई टिप्पणियों के आधार पर कार्य किया है। यह उनके सदाचार को दर्शाता है, जब उन्होंने समिति को फिर से शुरू करने का आदेश दिया।"
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित करने में भी विफल रहा।
भाषा तान्या