नाबालिग से यौन संबंध बनाकर बाद में शादी करने वाले आरोपी के खिलाफ पॉक्सो का मामला रद्द
सुरेश माधव
- 01 Nov 2025, 05:34 PM
- Updated: 05:34 PM
नयी दिल्ली, एक नवंबर (भाष) उच्चतम न्यायालय ने एक दुर्लभ मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए उस व्यक्ति के खिलाफ पॉक्सो की कार्यवाही निरस्त कर दी है, जिसने नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाए और बाद में उससे शादी कर ली थी।
न्यायालय ने यह भी कहा, ‘‘यह अपराध वासना का नहीं, बल्कि प्रेम का परिणाम था।’’
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ ने कहा कि पीड़िता (अब पत्नी) ने कहा है कि उसकी शादी उस व्यक्ति (दोषी) के साथ हुई थी और उन दोनों का एक साल का बेटा भी है। वे अब खुशहाल जीवन जी रहे हैं। लड़की के पिता भी चाहते हैं कि उनकी बेटी के पति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही समाप्त हो।
पीठ ने कहा, ‘‘हम इस तथ्य से अवगत हैं कि अपराध केवल एक व्यक्ति के विरुद्ध नहीं, बल्कि समग्र समाज के विरुद्ध है। जब कोई अपराध होता है, तो वह समाज की सामूहिक चेतना को आहत करता है और इसलिए समाज, अपने निर्वाचित सांसदों के माध्यम से, यह निर्धारित करता है कि ऐसे अपराध के लिए क्या दंड होगा और अपराधी के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए, ताकि उसकी पुनरावृत्ति न हो।’’
पीठ ने कहा कि आपराधिक कानून समाज की संप्रभु इच्छा का प्रकटीकरण है, लेकिन ऐसे कानून का क्रियान्वयन व्यावहारिक वास्तविकताओं से अलग नहीं है।
पीठ ने 28 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘न्याय प्रदान करने के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। यह न्यायालय प्रत्येक मामले की विशिष्टताओं के अनुसार अपने निर्णय देता है, अर्थात आवश्यकतानुसार दृढ़ता एवं गंभीरता के अलावा दयालुता के साथ भी निर्णय सुनाता है। जहां तक संभव हो, किसी विवाद का अंत करना समाज के सर्वोत्तम हित में भी है।’’
न्यायमूर्ति दत्ता ने पीठ की ओर से लिखे अपने फैसले में कहा कि शीर्ष अदालत को न्याय, प्रतिरोध और सुधार के परस्पर विरोधी हितों में संतुलन बनाने की आवश्यकता होती है।
पीठ ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने इस न्यायालय को उचित मामलों में ‘‘पूर्ण न्याय’’ करने की असाधारण शक्ति प्रदान की है और यह संवैधानिक शक्ति अन्य सभी शक्तियों से अलग है तथा इसका उद्देश्य कानून के कठोर प्रयोग से उत्पन्न होने वाली अन्याय की स्थितियों से बचना है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘विधायिका द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार, अपीलकर्ता को एक जघन्य अपराध का दोषी पाए जाने के बाद, उसके (अपीलकर्ता के) और उसकी पत्नी के बीच हुए समझौते के आधार पर वर्तमान मामले में कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती, लेकिन हमारी राय में, अपीलकर्ता की पत्नी की करुणा और सहानुभूति की गुहार को नज़रअंदाज करने से न्याय नहीं होगा।’’
पीठ ने कहा, ‘‘अपीलकर्ता और पीड़िता न केवल कानूनी रूप से विवाहित हैं, बल्कि वे पारिवारिक जीवन में भी साथ हैं। पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम के तहत अपीलकर्ता के अपराध पर विचार करते हुए, हमने पाया है कि यह अपराध वासना का नहीं, बल्कि प्रेम का परिणाम था।’’
इसने यह भी कहा, ‘‘पत्नी (पीड़िता) ने स्वयं अपीलकर्ता के साथ एक शांतिपूर्ण और स्थिर पारिवारिक जीवन जीने की इच्छा व्यक्त की है, ताकि पति (अपीलकर्ता) के माथे पर अपराधी होने का अमिट कलंक न लगे।’’
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही जारी रखने और अपीलकर्ता की कैद की सजा से इस परिवार में व्यवधान उत्पन्न होगा और पीड़िता, नवजात शिशु और समाज के ताने-बाने को अपूरणीय क्षति होगी।
पीठ ने कहा, ‘‘तदनुसार, उपरोक्त मंतव्यों, मुकदमे के बाद के घटनाक्रमों और पूर्ण न्याय प्रदान करने के हित में, हम संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके आपराधिक कार्यवाही निरस्त करना उचित समझते हैं।’’
शीर्ष अदालत ने आगाह करते हुए उस व्यक्ति पर एक शर्त लगाई और कहा कि वह अपनी पत्नी और बच्चे को कभी नहीं छोड़ेगा तथा जीवन भर सम्मान के साथ उनका भरण-पोषण भी करेगा।
पीठ ने कहा, "यदि भविष्य में अपीलकर्ता की ओर से कोई चूक होती है और उसकी पत्नी, उनके बच्चे या शिकायतकर्ता द्वारा इस अदालत के संज्ञान में लाया जाता है, तो परिणाम अपीलकर्ता के लिए सुखद नहीं होंगे।’’
पीठ ने स्पष्ट किया कि यह आदेश विशिष्ट परिस्थितियों में दिया गया है और इसे किसी अन्य मामले के लिए मिसाल नहीं माना जाना चाहिए।
भाषा सुरेश