न्यायालय मृत्युदंड देने के लिए फांसी के प्रावधान के खिलाफ अर्जी पर जनवरी में सुनवाई करेगा
धीरज नरेश
- 11 Nov 2025, 04:04 PM
- Updated: 04:04 PM
नयी दिल्ली, 11 नवंबर (भाषा)उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह 21 जनवरी को उस याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें मौजूदा समय में मृत्युदंड की सजा फांसी देकर देने के प्रावधान को हटाने का अनुरोध किया गया है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ फांसी पर लटकाकर मौत की सजा देने की वर्तमान प्रथा को समाप्त करने और इसके स्थान पर ‘‘प्राण घातक इंजेक्शन देने, गोली मारने, बिजली का झटका देने या गैस चैंबर’’ जैसे कम दर्दनाक तरीकों को अपनाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने पीठ से अनुरोध किया कि मामले की सुनवाई जनवरी 2026 में की जाए।
याचिकाकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने कहा, ‘‘यह मामला फांसी की तरह लटका हुआ है।’’ उन्होंने यह याचिका 2017 में दाखिल की थी।
इस पर वेंकटरमणी ने कहा, ‘‘अभी किसी को फांसी नहीं दी जाने वाली है। चिंता की कोई बात नहीं है।’’
मल्होत्रा ने कहा कि अटॉर्नी जनरल ने पहले अदालत को सूचित किया था कि केंद्र सरकार उठाए गए मुद्दों की समीक्षा के लिए एक समिति गठित करने पर विचार कर रही है।
वेंकटरमणी ने कहा, ‘‘मुझे बताया गया है कि कुछ कार्यवाही हुई है, लेकिन मुझे जानकारी नहीं है कि उनका कोई नतीजा निकला है या नहीं। मुझे इस मामले की जानकारी लेने दीजिए और अदालत में आकर रिपोर्ट देने दीजिए।’’
पीठ ने इसके बाद मामले की सुनवाई अगले वर्ष 21 जनवरी के लिए तय कर दी।
उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर 15 अक्टूबर को की गई सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि समस्या यह है कि सरकार इस मामले में जुड़ने को तैयार नहीं है।
पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब केंद्र ने कहा कि मौत की सजा पाए दोषियों को मौत के तरीके के रूप में घातक इंजेक्शन चुनने का विकल्प देना ‘बहुत व्यावहारिक’ नहीं हो सकता है।
मल्होत्रा ने दलील दी थी कि कम से कम दोषी कैदी को यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि वह फांसी चाहता है या फिर प्राणघातक इंजेक्शन।
शीर्ष अदालत ने मार्च 2023 में सुनवाई करते हुए कहा था कि वह विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर विचार कर सकती है, जो यह जांच करेगी कि क्या मौत की सजा पाए दोषियों को फांसी देना आनुपातिक और कम दर्दनाक है और उसने फांसी के तरीके से संबंधित मुद्दों पर केंद्र से ‘बेहतर डेटा’ मांगा था।
पीठ ने हालांकि स्पष्ट कर दिया था कि वह विधायिका को दोषी ठहराए गए लोगों को सजा देने का कोई विशेष तरीका अपनाने का निर्देश नहीं दे सकती।
भाषा धीरज