पहले गठिया सिर्फ अमीरों की बीमारी थी; अब आम लोग भी बड़े पैमाने पर हो रहे शिकार
पारुल नेत्रपाल नरेश
- 24 Feb 2025, 04:58 PM
- Updated: 04:58 PM
(डैन बॉमगार्ड, ब्रिस्टल विश्वविद्यालय)
ब्रिस्टल, 24 फरवरी (द कन्वरसेशन) “महारानी को गठिया का दर्द उठा है! जल्दी करो!” योर्गोस लैंथिमोस के निर्देशन में बनी फिल्म ‘द फेवरेट’ के एक दृश्य में मिसेज मेग को हड़बड़ाहट में शाही घराने के चिकित्सकों से यह कहते हुए देखा जा सकता है।
दरअसल, ‘द फेवरेट’ में ओलिविया कोलमैन ने गठिया से पीड़ित महारानी ऐन की भूमिका निभाई है, जिन्हें अक्सर हड्डियों और जोड़ों में तीव्र दर्द के साथ सूजन की शिकायत सताती है। फिल्म में शाही चिकित्सक दर्द से कराहती ऐन के सूजे हुए पैरों पर गोमांस की पट्टियां लपेटते नजर आते हैं।
इसके अगले दिन, महल में काम करने वाली अबिगेल महारानी ऐन को दर्द एवं सूजन से राहत दिलाने वाली ‘पोल्टिस’ (गर्म औषधियुक्त पट्टी) बनाने के लिए जंगली जड़ी-बूटियां जुटाती दिखाई देती है। वह इन जड़ी-बूटियों को गोमांस की पट्टियों से कहीं ज्यादा असरदार मानती है।
हालांकि, महारानी ऐन को गठिया के दर्द से कुछ खास राहत नहीं मिल पाती, क्योंकि उस दौर के चिकित्सकों के पास हड्डियों और जोड़ों की इस समस्या के इलाज के लिए ऐसे नुस्खे आजमाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
ऐन को दर्द से निजात पाने के लिए उस दौर की कई और बेतुकी इलाज पद्धतियों से गुजरना पड़ा होगा, जिनमें पैरों में खून की आपूर्ति करने वाली नसों को जलाना, पैरों पर हंस के मांस का लेप लगाना और जोंक थेरेपी आजमाना शामिल है। लेकिन ऐन की गठिया की असहनीय पीड़ा का अंत 1974 में 49 साल की उम्र में उनकी मौत के साथ ही हो पाया।
महारानी ऐन गठिया से पीड़ित शाही घराने की इकलौती सदस्य नहीं थीं। राजकुमार रीजेंट जॉर्ज(बाद में जॉर्ज चतुर्थ) भी इसके शिकार थे। धीरे-धीरे गठिया को अभिजात वर्ग की बीमारी करार दिया गया जो अत्यधिक आरामतलब जीवन जीने के कारण होती थी।
हालांकि, बाद के वर्षों में आम लोगों में भी बड़े बैमाने पर गठिया के मामले दर्ज किए जाने लगे। एक अनुमान के मुताबिक, 2020 में वैश्विक स्तर पर 5.6 करोड़ लोग गठिया की समस्या से जूझ रहे थे और 2050 तक इस आंकड़े के बढ़कर 9.6 करोड़ होने की आशंका है। कम उम्र के लोगों में भी गठिया के मामले सामने आने लगे हैं।
हालांकि, मरीजों के लिए राहत की बात यह है कि गठिया के इलाज के लिए अब गोमांस की पट्टियों और जड़ी-बूटियों की जरूरत नहीं है। चिकित्सा जगत के पास अब गठिया के इलाज और रोकथाम के कहीं अधिक कारगर उपाय मौजूद हैं।
गठिया को समझना जरूरी
-गठिया ‘क्रिस्टल आर्थ्रोपेथी’ समूह का एक रोग है, जो जोड़ों और मुलायम ऊतकों में ‘क्रिस्टल’ जमने के कारण होता है। गठिया तब विकसित होता है, जब खून में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ जाता है और यह जोड़ों में पहुंचकर सुई-नुमा ‘क्रिस्टल’ का रूप अख्तियार कर लेता है, जिससे तीव्र दर्द और सूजन की शिकायत सताती है।
गठिया के शिकार मरीज अक्सर इसे सबसे खराब दर्द में से एक के रूप में वर्णित करते हैं। यह आमतौर पर पैर के अंगूठे से शुरू होता है और इसमें त्वचा पर हल्का-सा स्पर्श भी अक्सर असहनीय लगता है।
गठिया के कुछ मरीज अपने पैर के ऊपर एक विशेष पिंजरा रखकर सोते हैं, जिससे चादर सीधे उनके पैर पर नहीं पड़ती, क्योंकि वे प्रभावित जोड़ों पर चादर का भार भी सहन करने की स्थिति में नहीं होते।
गठिया अन्य जोड़ों को भी प्रभावित कर सकता है। यह ‘टोफी’ (नरम ऊतकों या जोड़ों के पास की हड्डियों में मोनोसोडियम यूरेट का पत्थर जैसा जमाव) विकसित होने का कारण बन सकता है।
गठिया का निदान असहनीय दर्द, प्रभावित जोड़ों में और उनके आसपास सूजन तथा लालिमा जैसे आम लक्षणों पर आधारित है। सूजे हुए जोड़ से लिए गए तरल पदार्थ की माइक्रोस्कोप से जांच किए जाने के दौरान ‘क्रिस्टल’ दिखाई दे सकते हैं। इसके अलावा, रक्त परीक्षण में आमतौर पर यूरिक एसिड का स्तर बढ़ा हुआ मिलता है।
यूरिक एसिड बढ़ने की वजह
-यूरिक एसिड का स्तर आमतौर पर शराब के अत्यधिक सेवन, मोटापे, डायबिटीज और उच्च रक्तचाप के कारण बढ़ता है। प्यूरीन युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन को भी यूरिक एसिड के स्तर में वृद्धि के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
प्यूरीन उन यौगिक को कहते हैं, जिनमें यूरिक एसिड पाया जाता है। इससे युक्त खाद्य पदार्थों में मांस, कलेजी, मैकेरल और एंकोवी जैसी तैलीय मछलियां तथा मार्माइट और बीयर जैसे खमीरयुक्त पदार्थ शामिल हैं।
इलाज में कारगर दवाएं उपलब्ध
-खानपान में बदलाव मात्र से गठिया के लक्षणों से राहत पाना संभव नहीं है। दवाओं के जरिये गठिया के दर्द को उभरने और बीमारी को अधिक तीव्र रूप धारण करने से रोका जा सकता है।
जोड़ों में सूजन होने पर आबुप्रोफेन, नेप्रोक्सन या स्टेरॉयड जैसी सूजन-रोधी दवाएं सुझाई जाती हैं। एक अन्य विकल्प कोल्सीसिन है, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर छोटी अवधि के लिए किया जाता है और यह बहुत प्रभावी हो सकता है। हालांकि, इससे मरीज को दस्त की शिकायत सता सकती है।
सूजन खत्म होने के बाद भविष्य में गठिया के दर्द और सूजन को उभरने से रोकना महत्वपूर्ण है। इस मामले में एलोप्यूरिनॉल मददगार साबित हो सकता है, जिसे यूरिक एसिड के स्तर में कमी लाने के लिए जाना जाता है। इस बात के भी प्रमाण हैं कि चेरी खाने या उसका जूस पीने से गठिया के दर्द को उभरने से रोका जा सकता है, खासकर अगर मरीज डॉक्टर की सलाह पर एलोप्रिनोल का सेवन कर रहा हो तो।
गठिया से बचाव के लिए स्वस्थ दिनचर्या अपनाना, वजन नियंत्रित रखना, संतुलित आहार लेना, सिगरेट-शराब से परहेज करना, पर्याप्त मात्रा में पानी व अन्य तरल पदार्थ का सेवन करना और नियमित रूप से कसरत करना बेहद मददगार साबित हो सकता है।
भाषा पारुल नेत्रपाल