भय पर आस्था भारी : मौनी अमावस्या की भगदड़ के दौरान मौजूद रहे व्यक्ति की मां व भाई ने लगाई डुबकी
रंजन नरेश पवनेश
- 25 Feb 2025, 03:37 PM
- Updated: 03:37 PM
(कुणाल दत्त)
महाकुंभनगर (उप्र), 25 फरवरी (भाषा) आस्था के भय पर भारी पड़ने का एक अनूठा उदाहरण बिहार के रौशन साह का है, जिन्होंने सोमवार को अपनी 80 साल की मां और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ महाकुंभ में त्रिवेणी में स्नान किया।
रौशन के भाई 29 जनवरी को यहां हुई भगदड़ के दौरान महाकुंभ मेला क्षेत्र में मौजूद थे।
बांका जिले के रहने वाले साह बिहार निवासी परिवार के 10 अन्य सदस्यों के साथ अब अयोध्या जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, "मेरे बड़े भाई और भतीजा मौनी अमावस्या के दिन महाकुंभ नगर आए थे और वो उस स्थान करीब थे, जहां भगदड़ हुई थी। इसके बावजूद हम इस विशाल समागम में हिस्सा लेना चाहते थे, इसलिए हमने यह यात्रा की।"
‘पीटीआई-भाषा’ ने इस परिवार से गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के संगम स्थल पर पवित्र स्नान के बाद बातचीत की।
साह की 80 वर्षीय मां चिंता देवी ने भी संगम में डुबकी लगाई।
पिछले महीने प्रयागराज में मची भगदड़ में कम से कम 30 लोगों की मौत हो गई थी और 60 अन्य लोग घायल हो गए थे। जबकि हाल ही में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भीड़भाड़ के कारण मची भगदड़ में 18 लोगों की जान चली गई थी।
यह पूछे जाने पर कि क्या भगदड़ की घटनाओं के बाद वह महाकुंभ मेले में जाने को लेकर घबरा रही हैं, देवी ने कहा, "मर जाई ता तर जाई (अगर मैं मर जाऊंगी, तो मुझे मोक्ष मिलेगा)। मृत्यु भगवान की इच्छा है, इसलिए डर क्यों लगेगा?"
साह ने कहा कि उनके गृहनगर में कई लोगों ने सुरक्षा चिंताओं के कारण उन्हें महाकुंभ मेले में जाने से मना किया था।
देश के विभिन्न भागों से आए सैकड़ों तीर्थयात्री संगम स्थल के पास प्रयागराज की सड़कों पर उमड़े हैं। ये लोग अपने गृहनगर या अगले गंतव्य की ओर जा रहे हैं।
मुट्ठीगंज और कीडगंज को जोड़ने वाली सड़क जाम रही और इस पर वाहनों का आवागमन बंद रहा। साह और उनका परिवार शाम को प्रयागराज जंक्शन पहुंचने के लिए भारी भीड़ से दो-चार हुए।
उनके बहनोई सौरभ कुमार, उनकी पत्नी व मां और एक बच्चा उनके साथ संगम पहुंचे, जहां अब तक 60 करोड़ से अधिक लोग पवित्र स्नान कर चुके हैं।
मुंगेर निवासी कुमार ने साह के विचारों को दोहराया और सोमवार को प्रयागराज से अपने हृदय में आस्था को समेटे हुए रवाना हुए।
कुमार ने कहा, ‘‘हमारे अंदर अभी भी डर है, हमें सड़कों पर और फिर रेलवे स्टेशन पर और फिर ट्रेन के अंदर भारी भीड़ का सामना करना पड़ा है। लेकिन, यह हमें अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक इच्छाओं को पूरा करने से नहीं रोक रहा है।’’
उनकी मां, 55 वर्षीय उषा देवी ने कहा कि महाकुंभ पहुंचने के दौरान महसूस की गई सारी पीड़ा संगम में स्नान के बाद कम हो गई।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि मैं अगले कुंभ तक जीवित रहूंगी या नहीं, इसलिए मैं यहां आई हूं। मेरा दिल मुझे यहां आने के लिए मजबूर कर रहा था और यह भगवान का निमंत्रण है कि मैं इसका हिस्सा बनूं। पहले जो हुआ, उससे हमें डर लगा, लेकिन आस्था हमें ताकत देती है।"
परिवार ने थोड़ी देर आराम किया और महाकुंभ नगर के पास एक सड़क पर 'भंडारे में खिचड़ी' खाई।
पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों से संगम क्षेत्र पहुंचे कई लोगों ने भी सोमवार को पवित्र डुबकी लगाई और इसी तरह की भावनाएं व्यक्त कीं।
कृष्णा चौधरी और विशाल कुमार सिंह (दोनों 18) अपने माथे पर टीकों के साथ, बिहार के छपरा में अपने गृहनगर के लिए महाकुंभनगर से तेजी से निकले।
चौधरी से जब पूछा गया कि क्या पिछले महीने की भगदड़ से उन्हें किसी प्रकार का डर है, उन्होंने भोजपुरी में कहा, ‘‘डर के कौनो बात नईखे (डर की कोई बात नहीं है।)’’
भगवान शिव की तस्वीर वाली बनियान और ‘जय श्री राम’ के उद्घोष वाला गमछा ओढ़े 20 वर्षीय पवन कुमार यादव और 21 वर्षीय रोहन मलिक ने प्रयागराज पहुंचने के लिए लंबी यात्रा की।
मलिक ने कहा, ‘‘मैं जमशेदपुर में था और रोहन दुर्गापुर में। हम दोनों पश्चिम बंगाल के आसनसोल में मिले और हमारे परिवार के सदस्य भी हमारे साथ हो लिए। फिर हम नैनी गए और वहां से पैदल ही चल पड़े।’’
यादव ने कहा, ‘‘हम संतुष्ट और खुश होकर वापस जा रहे हैं कि हमने पवित्र स्नान किया।’’
पीली कोठी इलाके के स्थानीय निवासी अजय कुमार, जिन्होंने 13 जनवरी को कुंभ मेला शुरू होने के बाद से हर दिन अपने घर से तीर्थयात्रियों की भीड़ को गुजरते देखा है, कहते हैं, ‘‘प्रयागराज और नई दिल्ली स्टेशन पर हाल ही में हुई भगदड़ की घटनाओं के बावजूद, उनकी संख्या हर दिन बढ़ती ही जा रही है।’’
कुमार ने कहा, ‘‘आस्था एक शक्तिशाली चीज है, यह आपको वह सब करने के लिए प्रेरित कर सकती है जो आप अन्यथा नहीं कर सकते।’’
भाषा रंजन नरेश