छत्तीसगढ़ में पंचायती राज संस्थाओं को निधि और कार्य का हस्तांतरण नहीं हुआ : सीएजी
संजीव, रवि कांत
- 19 Mar 2025, 10:14 PM
- Updated: 10:14 PM
रायपुर, 26 जुलाई (भाषा) भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने बताया है कि छत्तीसगढ़ में पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) को निधि, कार्य और कर्मियों का हस्तांतरण अभी तक नहीं हुआ है और ये निकाय अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान अपनाई गई गतिविधि मानचित्रण के आधार पर काम कर रहे हैं।
विधानसभा में बुधवार को वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने 31 मार्च 2022 को समाप्त हुए वर्ष के लिए भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक से प्राप्त स्थानीय निकायों पर प्रतिवेदन पटल पर रखा।
सीएजी रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि 2017-18 से 2021-22 के दौरान राज्य सरकार ने राज्य वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित निधि के हस्तांतरण के मुकाबले पंचायती राज संस्थाओं पीआरआई और शहरी स्थानीय निकायों यूएलबी को कम बजट आवंटित किया था।
रिपोर्ट के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं की कार्य पद्धति , जवाबदेही और वित्तीय प्रतिवेदित मामलों का अवलोकन करने पर पाया गया कि छत्तीसगढ़ में निधि, कार्य और कर्मियों का हस्तांतरण अभी भी होना बाकी है। वर्तमान में पंचायती राज संस्थाएं अविभाजित मध्यप्रदेश के समय की गई गतिविधि मानचित्रण के आधार पर काम कर रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 73वें संविधान संशोधन अधिनियम का उद्देश्य पीआरआई को 11वीं अनुसूची में उल्लिखित 29 विषयों के संबंध में कार्य करने और योजनाओं को लागू करने के लिए सक्षम और सशक्त बनाना है, और अधिनियम में प्रत्येक राज्य को अधिकार दिया गया है कि वो इन कार्यों को विधि बनाकर पीआरआई को हस्तांतरित करें।
प्रभावी हस्तानांतरण करने के लिए, प्रत्येक स्तर पर स्थानीय शासन के लिए कार्यों का स्पष्ट विभाजन होंगे और पंचायतों के तीनों स्तरों की भूमिका और जिम्मेदारियों का निर्धारण गतिविधि-मानचित्रण के माध्यम से की जाएगी जो पंचायतों के कार्यो का हस्तानांतरण में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सितम्बर 2018 के तृतीय वित्त आयोग के प्रतिवेदन (अवधि 2017-18 से 2021-22) में उल्लेख किया गया है कि 29 कार्यों में से 27 कार्य पीआरआई को हस्तांतरित कर दिए गए थे, लेकिन संबंधित विभाग से इन कार्यों के लिए फंड, कार्य और कर्मचारियों का हस्तांतरण की कार्रवाई लंबित थी। वर्तमान में, पंचायती राज संस्थाएं मध्य प्रदेश में लागू हस्तांतरण नीति के आधार पर कार्य कर रही हैं। हालांकि गतिविधि मानचित्रण रूपरेखा तैयार की गई है, लेकिन इसे कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक कार्यकारी आदेश अभी तक जारी नहीं किए गए हैं और कई मामलों में कर्मचारी इसके बारे में अवगत नहीं हैं। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ राज्य में अभी तक फंड, कार्य और कर्मचारियों का वास्तविक हस्तांतरण नहीं हुआ है।
सीएजी ने पाया कि पीआरआई द्वारा निर्धारित प्रारूप में खातों का रखरखाव नहीं किया गया।
रिपोर्ट में 'शहरी स्थानीय निकायों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन' पर निष्पादन लेखापरीक्षा में पाया गया कि बिना योजना और आवश्यकता के बुनियादी ढांचे के विकास और मशीनों तथा वाहनों की खरीद के परिणामस्वरूप ये सुविधाएं बेकार हो गईं और परिणामस्वरूप अनुचित क्षमता विकास पर 369.98 लाख रुपये का निष्फल व्यय हुआ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार ने बढ़ते हुए नगरपालिका ठोस अपशिष्ट को वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधित करने की तत्काल आवश्यकता को संबोधित करने के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) नियम, 2016 तैयार किया। एसडब्ल्यूएम नियम 2016 के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार 169 शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में से 167 यूएलबी में, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन एक राज्य विशिष्ट मॉडल के तहत किया जा रहा था जिसे मिशन क्लीन सिटी (एमसीसी) के रूप में जाना जाता है। शेष दो यूएलबी में, बड़ी मात्रा में अपशिष्ट उत्पादन को देखते हुए एसडब्ल्यूएम के लिए एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधा (आईएसडब्ल्यूएमएफ) का दृष्टिकोण अपनाया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लेखापरीक्षा के दौरान यह पाया गया कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए शहरी स्थानीय निकाय की आवश्यकता के अनुसार विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन (डीपीआर) तैयार नहीं किया गया। जिससे प्रत्येक निकायों में उत्पन्न कचरे की वास्तविक मात्रा को ध्यान में रखते हुए वित्तीय और ढांचागत अवसंरचनात्मक क्षमता का आकलन भी नहीं किया जा सका। वर्ष 2017-22 के दौरान निकायों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के संचालन व्यय की तुलना में संचालन राजस्व (57 प्रतिशत) कम था जिससे सतत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सेवा के लिए वित्तीय प्रबंधन सुनिश्चित नहीं किया जा सका।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सामग्री पुर्नप्राप्ति सुविधा जैसे कि ठोस तरल संसाधन प्रबंधन (एसएलआरएम) केंद्रों और कम्पोस्टिंग शेड के अनियोजित/अपर्याप्त निर्माण तथा अतिरिक्त अवसंरचना/मानव-बल के बिना इस सुविधा को गोधन न्याय योजना (जीएनवाई) के साथ साझा करने से शहरी स्थानीय निकाय में कचरे के संग्रहण, पृथक्करण और प्रसंस्करण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। जिसके परिणामस्वरूप अपृथक्कीकृत कचरे को खुले क्षेत्रों में डंप किया जा रहा था। लेखापरीक्षा में नौ शहरी स्थानीय निकायों में 12 अनाधिकृत डंपिंग स्थल पाये, तथा इसके अतिरिक्त छः परम्परागत डंप स्थलों का उपचार भी नहीं किया गया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए निगरानी और मूल्यांकन तंत्र प्रभावी नहीं था। यद्यपि राज्य स्तरीय सलाहकार बोर्ड (एसएलएबी) का गठन किया गया था, लेकिन एसएलएबी की सिफारिशों का कार्यान्वयन सुनिश्चित नहीं किया गया। आगे यह भी देखा गया कि, छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड (सीईसीबी) द्वारा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियों की समीक्षा नहीं की गई। फलस्वरूप, सीईसीबी द्वारा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भेजी गई वार्षिक रिपोर्ट में राज्य में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की कमियों का उल्लेख नहीं किया गया।
ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि नगर पालिक निगम, अंबिकापुर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 और एमसीसी में निहित प्रावधानों का अनुपालन करते हुए एसएलआरएम केंद्रों पर पूर्ण पृथक्करण करने वाला एकमात्र शहरी स्थानीय निकाय है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कोरबा नगर निगम ने ठेकेदार को प्री-कास्ट कंक्रीट पाइप के लिए लागू उच्च दर पर भुगतान किया था, जबकि काम में प्रीस्ट्रेस्ड सीमेंट कंक्रीट पाइप का उपयोग किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप 7.88 करोड़ रुपये का अधिक भुगतान हुआ।
भाषा
संजीव, रवि कांत