महाराष्ट्र के गांवों ने विधवाओं के उत्थान के लिए सामाजिक सुधार की दिशा में कदम उठाए
योगेश धीरज
- 06 Apr 2025, 02:49 PM
- Updated: 02:49 PM
(मनीषा रेगे)
मुंबई, छह अप्रैल (भाषा) महाराष्ट्र के 7,000 से अधिक गांवों ने उन रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों को समाप्त करने की घोषणा की है जिनके तहत विधवाओं को परेशान या उनके साथ भेदभाव किया जाता था।
विधवाओं से संबंधित कुप्रथाओं को समाप्त करने के अभियान का नेतृत्व कर रहे कार्यकर्ता प्रमोद झिंजाड़े ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि महाराष्ट्र में 27,000 ग्राम पंचायतों में से 7,683 गांवों ने ग्राम सभाएं आयोजित कर विधवाओं के प्रति भेदभाव करने वाली प्रथाओं को समाप्त करने की घोषणा की है।
इस अभियान को तब गति मिली जब कोल्हापुर जिले का हेरवाड देश का पहला गांव बन गया जिसने 2022 में विधवाओं से जुड़ी कुप्रथाओं पर प्रतिबंध लगा दिया ताकि महिलाओं को सम्मान के साथ जीने के अधिकार मिल सके।
हेरवाड गांव ने चार मई 2022 को एक प्रस्ताव पारित कर पति की मौत के बाद पत्नी के ‘मंगलसूत्र’ (विवाहित महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला गले का आभूषण) उतारने,बिछिया, सिंदूर हटाने और चूड़ियां तोड़ने जैसी परंपराओं पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया।
पिछले कुछ वर्षों में कई ग्रामीण इलाकों ने सार्वजनिक गणपति पूजा, हल्दी-कुमकुम कार्यक्रमों और ध्वजारोहण समारोहों में विधवाओं को शामिल करके हेरवाड की राह अपनाई है।
देश में विधवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का संज्ञान लेते हुए, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पिछले वर्ष एक परामर्श जारी किया था तथा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इन महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार लाने तथा उनकी गरिमा की रक्षा करने को कहा था।
हेरवाड के पूर्व सरपंच सुरगोंडा पाटिल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत के दौरान कहा कि चूड़ियां तोड़ने और मंगलसूत्र तथा बिछिया उतारने की प्रथा लगभग बंद हो गई है।
उन्होंने कहा, ‘‘पहले हम उन घरों में जाते थे जहां मौतें होती थीं, ताकि पता चल सके कि इन रीति-रिवाजों का पालन किया जा रहा है या नहीं। लेकिन अब लोग ज़्यादा जागरूक हो गए हैं।’’
उन्होंने आगे बताया कि गांव में कुछ विधवाओं ने दोबारा शादी कर ली है और उन्हें सामाजिक और धार्मिक समारोहों में शामिल किया जाता है।
हेरवाड निवासी वैशाली पाटिल ने कहा, ‘‘विधवाओं के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार किया जा रहा है। लोगों को एहसास हो गया है कि हम इंसान हैं। हालांकि, मानसिकता को बदलना होगा और सदियों पुरानी परंपराओं को रातों-रात नहीं रोका जा सकता।’’
वैशाली पाटिल के पति का 12 साल पहले निधन हो गया था।
उन्होंने कहा कि परिवार के बुजुर्गों को कुछ रीति-रिवाजों को छोड़ने के लिए राजी करना कठिन है और इस पर काम किया जा रहा है।
नासिक जिले के मुसलगांव के सरपंच अनिल शिरसाट ने कहा कि उनका गांव 90 प्रतिशत शिक्षित है और विधवाओं से जुड़ी कुप्रथाओं का अनुपालन नहीं अपनाता।
उन्होंने कहा,‘‘हमारे यहां मंगलसूत्र उतारने, सिंदूर पोंछने और अन्य रीति-रिवाजों का रिवाज नहीं है। पिछले तीन सालों से हम ग्राम पंचायत को मिलने वाले कोष का 15 प्रतिशत हर साल पांच जरूरतमंद विधवाओं की मदद के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।’’
भाषा
योगेश