जम्मू-कश्मीर सरकार ने ‘आतंकवाद का महिमामंडन’ करने वाली 25 किताबों पर रोक लगाई
धीरज अविनाश
- 07 Aug 2025, 10:35 PM
- Updated: 10:35 PM
श्रीनगर, सात अगस्त (भाषा) ‘‘झूठे विमर्श को बढ़ावा देने और आतंकवाद का महिमामंडन करने’’ के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा 25 पुस्तकों के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने के एक दिन बाद, पुलिस ने बृहस्पतिवार को इन किताबों को जब्त करने और इसके प्रसार को रोकने के लिए घाटी में छापेमारी की।
गृह विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार मौलाना मौदूदी, अरुंधति रॉय, ए जी नूरानी, विक्टोरिया स्कोफील्ड और डेविड देवदास जैसे प्रसिद्ध लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकें जम्मू-कश्मीर में ‘‘अलगाववाद’’ का प्रचार करती हैं और इन्हें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 98 के अनुसार ‘जब्त’ घोषित किया जाना चाहिए।
पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने के कदम की उनके लेखकों और राजनीतिक नेताओं के एक वर्ग ने कड़ी आलोचना की। उन्होंने दावा किया कि यह ‘‘कश्मीरियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर चेतावनी देने’’ का एक प्रयास है, साथ ही कहा कि लोकतंत्र विचारों के मुक्त आदान-प्रदान से पनपता है।
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि बृहस्पतिवार को श्रीनगर, गांदरबल, अनंतनाग, कुलगाम, पुलवामा, शोपियां और बारामूला जिलों में किताबों की दुकानों पर छापे मारे गए।
उन्होंने बताया कि सरकारी निर्देश के बाद पुलिस दलों ने इन जिलों में विभिन्न किताबों की दुकानों का निरीक्षण किया और प्रतिबंधित पुस्तकों की तलाशी ली।
अधिकारियों ने बताया, ‘‘कट्टरपंथी साहित्य को जब्त करने के लिए प्रवर्तन अभियान सरकारी निर्देशों के अनुरूप चलाए गए। इस अभियान का लक्ष्य अलगाववादी विचारधाराओं को बढ़ावा देने वाली या आतंकवाद का महिमामंडन करने वाली सामग्री थी।’’
पुलिस अधिकारियों ने बताया, ‘‘तलाशी के दौरान, किताबों की दुकानों के मालिकों को प्रतिबंधित सामग्री रखने या वितरित करने के खिलाफ चेतावनी दी गई। उन्हें इन निर्देशों का उल्लंघन करने के कानूनी परिणामों के बारे में भी बताया गया और दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया।’’
पुलिस ने शांति और अखंडता बनाए रखने के लिए जनता से सहयोग मांगा।
उन्होंने कहा कि नागरिकों से आग्रह किया जाता है कि वे ऐसी प्रतिबंधित सामग्री से दूर रहें तथा प्रतिबंधित साहित्य के प्रसार सहित किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना निकटतम थाने में दें।
आदेश में कहा गया है कि जांच और विश्वसनीय खुफिया जानकारी पर आधारित उपलब्ध साक्ष्य ‘स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं’ कि हिंसा और आतंकवाद में युवाओं की भागीदारी के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक ‘झूठे विमर्श और अलगाववादी साहित्य का आंतरिक स्तर पर व्यवस्थित प्रसार है, जिसे अक्सर ऐतिहासिक या राजनीतिक टिप्पणी के रूप में पेश किया जाता है।’’
आदेश में कहा गया है कि यह भारत के खिलाफ ‘‘युवाओं को गुमराह करने, आतंकवाद का महिमामंडन करने और हिंसा भड़काने’’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि ‘‘सेंसरशिप विचारों को दबाती नहीं है, बल्कि उनकी गूंज को बढ़ाती है।’’
उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘लोकतंत्र विचारों के मुक्त आदान-प्रदान पर फलता-फूलता है। किताबों पर प्रतिबंध लगाने से इतिहास नहीं मिट सकता, यह केवल विभाजन को बढ़ावा देता है।’’
पीडीपी प्रमुख ने कहा, ‘‘लोकतांत्रिक आवाजों और मौलिक स्वतंत्रताओं को दबाने से अलगाव और अविश्वास बढ़ता है।’’
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने इस प्रतिबंध को ‘‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खुला हमला’’ करार दिया।
माकपा ने प्रतिबंध को तत्काल हटाने की मांग करते हुए एक बयान में कहा, ‘‘ पार्टी का पोलित ब्यूरो जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल द्वारा 25 पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का विरोध करता है। यह सेंसरशिप अधिनायकवाद की एक और अभिव्यक्ति है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक बेशर्म हमला है।’’
हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने से ऐतिहासिक तथ्य मिट नहीं जाएंगे, बल्कि इससे ऐसे ‘‘सत्तावादी कार्यों’’ के पीछे मौजूद लोगों की ‘‘असुरक्षा और सीमित समझ’’ उजागर होगी।
प्रतिबंधित पुस्तकों में इस्लामी विद्वान और जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी की ‘‘अल जिहादुल फिल इस्लाम’’, ऑस्ट्रेलियाई लेखक क्रिस्टोफर स्नेडेन की ‘‘इंडिपेंडेंट कश्मीर’’, डेविड देवदास की ‘‘इन सर्च ऑफ ए फ्यूचर ’’, विक्टोरिया स्कोफिल्ड की ‘‘कश्मीर इन कॉन्फ्लिक्ट ’’, ए जी नूरानी की ‘‘द कश्मीर डिस्प्यूट (1947-2012)’’, और अरुंधति रॉय द्वारा लिखी गई ‘‘आज़ादी’’ शामिल हैं।
प्रतिबंधित पुस्तकों में अतहर जिया की ‘‘रेसिस्टिंग डिसएपियरेंस: मिलिट्री ऑक्यूपेशन एंड वूमेन एक्टिविज्म इन कश्मीर’’, मारूफ रजा की ‘‘कन्फ्रॉन्टिंग टेररिज्म’’, राधिका गुप्ता की ‘‘फ्रीडम इन कैप्टिविटी: नेगोशिएशन्स ऑफ बिलॉन्गिंग अलोंग कश्मीरी फ्रंटियर’’, डॉ. शमशाद शान की ‘‘यूएसए एंड कश्मीर’’, सुगत बोस और आयशा जलाल द्वारा लिखी गई ‘‘कश्मीर एंड द फ्यूचर ऑफ साउथ एशिया’’ शामिल हैं।
भाषा धीरज