शिबू सोरेन के श्राद्धकर्म में शामिल होने नेमरा पहुंचे राजनाथ और बाबा रामदेव ने उन्हें श्रद्धांजलि दी
रंजन रंजन माधव
- 16 Aug 2025, 05:59 PM
- Updated: 05:59 PM
रांची, 16 अगस्त (भाषा) रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को शिबू सोरेन की तुलना आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा से की और कहा कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ने अपना जीवन गरीबों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया।
सिंह, झारखंड के राज्यपाल संतोष गंगवार, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ, सांसद पप्पू यादव, भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे और योग गुरु बाबा रामदेव सहित अन्य लोग सोरेन के श्राद्ध कर्म में शामिल होने के लिए राज्य की राजधानी रांची से लगभग 70 किलोमीटर दूर नेमरा गए।
सिंह ने कहा, ‘‘जहां तक मैंने उन्हें जाना है, वह सरल स्वभाव के थे। बिरसा मुंडा के बाद अगर किसी योद्धा ने आदिवासी समुदाय में जन्म लिया है, तो वह ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन थे। उनकी क्षति अपूरणीय है। वह बहुत सरल थे। उन्होंने अपना जीवन गरीबों के लिए समर्पित कर दिया। मैं केंद्र और अपनी पार्टी की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि देने आया हूं।’’
शिबू सोरेन के बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सिर मुंडवा रखा था और आदिवासी धोती-कुर्ता पहने तथा कंधे पर गमछा डाले श्राद्ध कर्म करते नजर आए। इस मौके पर सभी वर्गों के लोग उपस्थित थे।
झारखंड के मुख्यमंत्री ने राजनाथ सिंह, रेवंत रेड्डी और अन्य लोगों से मुलाकात की। उन्होंने आम लोगों का अभिवादन किया और भोजन व्यवस्था का निरीक्षण किया।
उनके बेटों और भाई बसंत ने भी भी मुंडन करवाया था। इस दौरान व्हीलचेयर पर बैठी उनकी मां रूपी सोरेन और पत्नी कल्पना भी मौजूद थीं।
राजनाथ और बाबा रामदेव ने रूपी सोरेन के पैर छुए, जिन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया।
चौबे ने कहा कि झारखंड के जंगलों से संसद तक का शिबू सोरेन का सफर अविश्वसनीय था।
शिबू सोरेन (81) का दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया था। उनके निधन से उस राजनीतिक युग का अंत हो गया, जिसमें आदिवासी आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर उभरा और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सह-संस्थापक ने झारखंड के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री के श्राद्ध कर्म के लिए व्यापक व्यवस्था की गई है।
संबंध में एक अधिकारी ने कहा, ‘‘लोगों की संभावित भारी भीड़ को देखते हुए, सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए हैं। लोगों की सुरक्षा और यातायात व्यवस्था के प्रबंधन के लिए नेमरा में एक समर्पित नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सुरक्षा के लिए भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 10 अधिकारी, 60 पुलिस उपाधीक्षक, 65 निरीक्षक और 2,500 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। पुलिस, प्रशासनिक कर्मचारियों और स्वयंसेवकों वाली बहु-एजेंसी टीम प्रभावी भीड़ प्रबंधन, आपातकालीन परिस्थिति और कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे कार्यरत रहेंगी।’’
श्राद्ध कर्म के लिए आदिवासी रीति-रिवाजों के अनुसार व्यवस्थाएं भी की जा रही हैं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पांच अगस्त से ही गांव में हैं।
उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को परिवहन, स्वच्छता, भोजन वितरण, स्वास्थ्य सेवा, आवास और जन सुरक्षा जैसी सेवाओं के लिए निर्बाध समन्वय सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
अधिकारी ने कहा, ‘‘सुविधाजनक आवाजाही के लिए 300 से अधिक ई-रिक्शा निर्धारित पार्किंग क्षेत्रों और कार्यक्रम स्थल के बीच चलाए जाएंगे। तीन बड़े पार्किंग क्षेत्र विकसित किए गए हैं, जिनमें से प्रत्येक में जैव शौचालय बनाए गए हैं। इसके अलावा, आगंतुकों की सुविधा के लिए विश्राम स्थल और विशेष पैदल मार्ग भी बनाए गए हैं।’’
तीन बड़े भोजन पंडालों में खानपान की व्यवस्था की गई है, जहां पारंपरिक श्राद्ध भोजन और प्रसाद परोसा जा रहा है।
गुरुजी के नाम से प्रख्यात रहे शिबू सोरेन के जीवन और योगदान की स्मृति में एक विशेष प्रदर्शनी और स्मृति दीर्घा भी स्थापित की गई है।
इस प्रदर्शनी में दुर्लभ तस्वीरें, ऐतिहासिक दस्तावेज और उनके राजनीतिक जीवन के प्रमुख पड़ाव प्रदर्शित किए गए हैं, जिनमें आदिवासी कल्याण और जनसेवा में उनके योगदान पर विशेष ध्यान किया गया है।
श्राद्ध कर्म में काफी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं।
शिबू सोरेन का जन्म बिहार के रामगढ़ जिले (अब झारखंड में) के नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 को हुआ था । सोरेन को 'दिशोम गुरु' (भूमि के नेता) और झामुमो के पितामह के रूप में जाना जाता था, वह देश के आदिवासी और क्षेत्रीय राजनीतिक परिदृश्य में सबसे स्थायी राजनीतिक हस्तियों में से एक हैं।
उनका राजनीतिक जीवन आदिवासियों के अधिकारों की निरंतर वकालत से परिभाषित था।
सोरेन ने 1973 में, धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में एक जनसभा के दौरान बंगाली मार्क्सवादी ट्रेड यूनियन नेता ए.के. रॉय और कुर्मी-महतो नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना की।
झामुमो जल्द ही एक अलग आदिवासी राज्य की मांग के लिए प्रमुख राजनीतिक आवाज़ बन गया और उसे छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्रों में समर्थन मिला।
कहा जाता है कि सामंती शोषण के खिलाफ सोरेन की जमीनी स्तर पर लामबंदी ने उन्हें एक आदिवासी प्रतीक के रूप में स्थापित किया।
उनके और अन्य लोगों द्वारा संचालित दशकों के आंदोलन के बाद, 15 नवंबर, 2000 को झारखंड के गठन के साथ एक अलग राज्य की मांग अंततः पूरी हुई।
सोरेन का प्रभाव राज्य की राजनीति तक ही सीमित नहीं था।
शिबू दुमका से कई बार लोकसभा के लिए चुने गए। जून 2020 में वह राज्यसभा संसद बने।
संप्रग सरकार में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में, उन्होंने 23 मई से 24 जुलाई, 2004 तक; 27 नवंबर, 2004 से 2 मार्च, 2005 तक; और 29 जनवरी से नवंबर 2006 तक केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में कार्य किया था।
भाषा रंजन रंजन