संसदीय समिति ने वहनीय कैंसर बीमा की वकालत की
सुभाष मनीषा
- 21 Aug 2025, 01:19 PM
- Updated: 01:19 PM
नयी दिल्ली, 21 अगस्त (भाषा) संसद की एक समिति ने सिफारिश की है कि व्यापक समावेशन के लिए सरकार द्वारा विनियमित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के अंतर्गत मानकीकृत मूल्य निर्धारण के साथ कैंसर निदान पैकेज तैयार किये जाने चाहिए।
नारायण दास गुप्ता की अध्यक्षता वाली राज्यसभा की याचिका समिति ने बुधवार को प्रस्तुत अपनी 163वीं रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की है कि राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) द्वारा लागू मूल्य सीमा, जैसे कि 42 आवश्यक कैंसर रोधी दवाओं पर मौजूदा 30 प्रतिशत व्यापार मार्जिन सीमा को कैंसर के टीके, ‘इम्यूनोथेरेपी’ और ‘कीमोथेरेपी’ तक भी विस्तारित किया जाना चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘नियामक निगरानी का यह विस्तार बीमाकर्ताओं की लागत को नियंत्रित करने तथा कैंसर बीमा उत्पादों को अधिक किफायती बनाने तथा व्यापक जनसंख्या वर्ग के लिए सुलभ बनाने के वास्ते आवश्यक है।’’
समिति ने सिफारिश की कि सरकारी वित्त पोषण, निजी क्षेत्र की भागीदारी और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के माध्यम से उन्नत चिकित्सा प्रौद्योगिकी से सुसज्जित और भी कैंसर अस्पताल स्थापित किए जाएं।
समिति ने कहा, ‘‘मरीजों को कैशलेस सेवाएं प्रदान करने के लिए इन सुविधाओं को बीमा कंपनियों के नेटवर्क में शामिल किया जाना चाहिए। स्पष्ट रूप से परिभाषित उपचार पैकेज तैयार करने से बीमा कंपनियों को लागतों को मानकीकृत करने और पॉलिसीधारकों को वित्तीय लाभ पहुंचाने में और मदद मिलेगी।’’
संसदीय समिति ने कहा है कि इसके अतिरिक्त, कैंसर का शीघ्र पता लगाने के लिए विशेष कैंसर जांच केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए।
समिति ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) जैसी प्रमुख स्वास्थ्य योजनाओं में कैंसर जांच को एकीकृत करने और केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) व भूतपूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ईसीएचएस) के अंतर्गत कैंसर जांच को शामिल करने के लिए नीतिगत स्तर पर हस्तक्षेप की भी सिफारिश की।
समिति ने कहा कि इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य उद्देश्यों के लिए निजी क्षेत्र के बुनियादी ढांचे का अधिकतम उपयोग संभव होगा।
रिपोर्ट में प्रभावी सार्वजनिक-निजी भागीदारी, मानकीकृत उपचार प्रोटोकॉल को अपनाने तथा मरीजों पर वित्तीय बोझ घटाने के लिए बीमा कवरेज के विस्तार की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
इसके अतिरिक्त, इसमें स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और एक लचीले कैंसर देखभाल वातावरण के अभिन्न अंग के रूप में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के महत्व को रेखांकित किया गया।
समिति ने बीमा प्रदाताओं, बैंकिंग संस्थानों और कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) पहल की अधिक भागीदारी की भी सिफारिश की है।
इसने यह भी पाया कि देश की आबादी और स्वास्थ्य आवश्यकताओं को देखते हुए, मौजूदा निदान केंद्रों की संख्या अपर्याप्त है।
समिति ने कहा कि विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, उपकरणों से लैस जांच केंद्रों और कैंसर विशेषज्ञों की कमी है, जो बड़े पैमाने पर शहरों में केंद्रित हैं।
समिति ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त जांच केंद्र स्थापित करने की वकालत की। इसने सुझाव दिया कि व्यापक समावेशन के लिए सरकारी-विनियमित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के अंतर्गत मानकीकृत मूल्य निर्धारण वाले कैंसर जांच पैकेज तैयार किए जाएं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विनियमित पैकेज दरों पर जांच सेवाओं की उपलब्धता से ऐसे केंद्रों को बीमा कंपनियों के नेटवर्क में शामिल करना आसान हो जाएगा, जिससे लाभार्थियों के एक व्यापक वर्ग को कैशलेस उपचार सुविधा का लाभ मिल सकेगा।
देश में कैंसर जांच की कम दर को देखते हुए, समिति ने यह भी सिफारिश की कि सरकार को राष्ट्रीय जांच कार्यक्रम का विस्तार करना चाहिए और विशेष रूप से उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जहां चिकित्सा देखभाल पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं है।
जांच केंद्रों के लिए बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के अलावा, समिति ने सरकार से देश भर में जागरूकता अभियान तेज करने का आग्रह किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के कई हिस्सों में कैंसर अब भी एक सामाजिक कलंक माना जाता है, इसे ध्यान में रखते हुए इन साझेदारियों का लाभ उठाने से निवारक संदेशों को प्रसारित करने में सरकार के प्रयासों को प्रभावी रूप से सहायता मिलेगी।
साथ ही, प्रारंभिक जांच के महत्व को समझाने के लिए मशहूर हस्तियों, विशेष रूप से कैंसर से उबर चुकी मशहूर हस्तियों की सेवाएं लेने का सुझाव दिया गया है।
रिपोर्ट में इस ओर ध्यान दिलाया गया कि कुछ दवा कंपनियां रोगी सहायता कार्यक्रम तो चलाती हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति कम है। समिति ने ऐसी पहल को लागू करने के लिए और अधिक दवा निर्माताओं को शामिल करने की सिफारिश की, खासकर उन क्षेत्रों में जहां स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच अपर्याप्त है।
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