अयप्पा संगमम : यूडीएफ ने वाम सरकार से स्पष्टीकरण मांगा, मंत्री ने राजनीति का आरोप लगाया
प्रशांत माधव
- 03 Sep 2025, 10:18 PM
- Updated: 10:18 PM
तिरुवनंतपुरम, तीन सितंबर (भाषा) आगामी ग्लोबल अय्यप्पा संगमम को लेकर एक स्पष्ट राजनीतिक चाल चलते हुए, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने बुधवार को बहिष्कार की घोषणा करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय वामपंथी सरकार से अतीत में हुए “परंपरा के उल्लंघन” पर जवाब मांगा। इस रणनीति ने सरकार को रक्षात्मक मुद्रा में ला खड़ा किया और मंत्री वी.एन. वासवन की ओर से राजनीतिकरण के आरोप लगाए गए।
देवस्वोम मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार उन लोगों के खिलाफ मामले वापस लेने के संबंध में कोई अड़ियल रुख नहीं रखती है, जिन्होंने सबरीमाला आंदोलन में भाग लिया था और पहाड़ी मंदिर में मासिक धर्म आयु वर्ग वाली महिलाओं के प्रवेश का विरोध किया था।
मंत्री केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वी डी सतीशन की टिप्पणी का जवाब दे रहे थे। सतीशन ने कहा था कि संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) सबरीमला में वैश्विक अयप्पा संगमम में भाग लेने पर तभी निर्णय लेगा, जब वाम सरकार प्रमुख सवालों का जवाब देगी, जिसमें सात साल पहले ‘‘सदियों पुरानी परंपरा के उल्लंघन’’ में उसकी भूमिका भी शामिल है।
वैश्विक अयप्पा संगमम का आयोजन त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड द्वारा उसकी 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में केरल सरकार के सहयोग से 20 सितंबर को पम्पा में किया जा रहा है।
सतीशन ने मंगलवार शाम को यूडीएफ के नेताओं की एक ऑनलाइन बैठक में लिये गए निर्णयों की जानकारी देने के लिए आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हम इस कार्यक्रम का बहिष्कार नहीं कर रहे हैं’’। उन्होंने हालांकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाली वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार पर ‘‘इस प्राचीन मंदिर में लंबे समय से चली आ रही परंपराओं को तोड़ने वाली कार्रवाइयों का समर्थन करके सबरीमाला में अशांति पैदा करने’’ का आरोप लगाया।
यूडीएफ संयोजक और सांसद अडूर प्रकाश के साथ सतीशन ने उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के बाद 2018 में सबरीमला में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘यह एलडीएफ सरकार थी जिसने उच्चतम न्यायालय में यूडीएफ सरकार द्वारा प्रस्तुत हलफनामे को बदल दिया था, जिससे यह परंपरा के उल्लंघन का समर्थन करने वाला बन गया।’’
उन्होंने यह भी जानना चाहा कि मंदिर में परंपरा के उल्लंघन की अनुमति देने के वाम सरकार के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के खिलाफ दर्ज मामले वापस क्यों नहीं लिए गए। उन्होंने आरोप लगाया कि अनुबंध के तहत मंदिर को दी जाने वाली वार्षिक राशि पिछले तीन वर्षों से लंबित है।
उन्होंने कहा, “पहले सरकार को इन सवालों के जवाब देने दीजिए। उसके बाद ही यूडीएफ तय करेगा कि वह इसमें भाग लेगा या नहीं।”
कांग्रेस नेता ने सरकार के रवैये को “कपटपूर्ण” करार दिया।
यह पूछे जाने पर कि क्या यूडीएफ इस कार्यक्रम का बहिष्कार कर रहा है, सतीशन ने जवाब दिया, “क्या यह घोषणा करने के लिए कोई राजनीतिक परंपरा है? पहले सरकार हमारे सवालों का जवाब दे।”
सतीशन ने मीडिया की उन खबरों को भी खारिज कर दिया कि जब त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) के अध्यक्ष पी.एस. प्रशांत उन्हें अयप्पा समागम में आमंत्रित करने के लिए ‘कैंटोनमेंट हाउस’ आए थे, तब वह उनसे मिलने के लिए अनिच्छुक थे।
विपक्ष के नेता ने कहा, “मेरी सहमति के बिना मेरा नाम पैनल में शामिल कर लिया गया। दौरा करने से पहले देवस्वोम अध्यक्ष ने इस बात की पुष्टि नहीं की कि मैं वहां हूं या नहीं। उन्होंने पत्र दिया और चले गए, लेकिन बाद में (मीडिया को) खबर दी कि मैंने उनसे मिलने से इनकार कर दिया है।” उन्होंने कहा कि अगर टीडीबी अध्यक्ष पहले से अनुमति लेकर आते हैं तो वह उनसे दोबारा मिलने को तैयार हैं।
सतीशन के बयानों पर प्रतिक्रिया मांगे जाने पर मंत्री वसावन ने कहा, “यह राजनीति है और उन्हें ऐसे सवाल पूछने दीजिए।”
उन्होंने कहा कि वैश्विक अयप्पा संगमम के दौरान चर्चा का विषय विकास ही है, इसके अलावा कुछ नहीं।
हालांकि, देवस्वोम मंत्री विपक्ष के नेता द्वारा उठाए गए सवालों से संबंधित किसी भी बात पर टिप्पणी करने से बचते दिखे और कहा कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, क्योंकि सबरीमला से संबंधित समीक्षा याचिका सर्वोच्च न्यायालय में है।
उच्चतम न्यायालय ने 2018 में सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग वाली महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को ‘‘असंवैधानिक’’ करार देते हुए उसे हटा दिया था। इस फैसले के बाद व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए और यह अब भी एक बड़ी पीठ के समक्ष विचाराधीन है।
सबरीमला में भगवान अयप्पा मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की दो महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के लिए माकपा और एलडीएफ सरकार को अयप्पा श्रद्धालुओं के एक वर्ग, कांग्रेस नीत गठबंधन और संघ परिवार की ओर से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था।
भाषा प्रशांत