गुजरात के सरकारी स्कूल ने छात्रों की आलोचनात्मक सोच विकसित करने के लिए परियोजना शुरू की
आशीष माधव
- 29 Oct 2025, 06:58 PM
- Updated: 06:58 PM
अहमदाबाद, 29 अक्टूबर (भाषा) गुजरात के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय ने एक परियोजना शुरू की है, जिसमें छात्रों को शिक्षकों के प्रश्नों का महज उत्तर देने के बजाय प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस प्रयास का उद्देश्य छात्रों में आलोचनात्मक सोच विकसित करना है, जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में जोर दिया गया है।
एक आधिकारिक विज्ञप्ति में बताया गया कि 'सवालो नी साल' या 'प्रश्नों का वर्ष' नामक यह अनूठा प्रयोग गुजरात के साबरकांठा जिले के श्री चंदप इंग्लिश प्राइमरी स्कूल में किया जा रहा है।
स्कूल ने इस परियोजना को इस वर्ष के प्रारंभ में शुरू किया था, जिसका उद्देश्य बच्चों में जिज्ञासा जगाना, उन्हें प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करना तथा उन्हें स्वयं अपने उत्तर खोजने के लिए सशक्त बनाना था।
विज्ञप्ति में कहा गया कि 'प्रश्नों का वर्ष' पहल बच्चों को सोचने, समझने और स्वयं समाधान खोजने में सक्षम बनाती है। स्कूल और उसके शिक्षकों के प्रयास बच्चों के सर्वांगीण विकास में बहुत कारगर साबित हो रहे हैं।
सहायक शिक्षक कमलेश कुमार पटेल ने कहा, "किसी भी प्रश्न को छोटा या बड़ा नहीं समझा जाए। यह हमारे लिए बड़ी सफलता है कि हमारे स्कूल में अब कोई भी बच्चा प्रश्न पूछने में झिझकता नहीं है। बच्चे दो तरीकों से प्रश्न पूछ सकते हैं: या तो मौखिक रूप से या प्रश्न पेटी में अपना प्रश्न डालकर।"
उन्होंने बताया कि जब से यह परियोजना शुरू हुई है, बच्चे सवाल पूछने में झिझकते नहीं हैं। पटेल ने कहा, "अब छात्र खुलकर सवाल पूछते हैं और शिक्षक उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन देते हैं। इससे बच्चों में किसी विषय से संबंधित सवाल पूछने की क्षमता भी विकसित हो रही है। हमारे छात्र अब खुद भी शोध करने लगे हैं।"
छात्रों में से एक धार्मिक नरेशभाई ने कहा कि सवाल पूछना जितना ज़रूरी है, जवाब पाना भी उतना ही ज़रूरी है। उन्होंने कहा, "यह बहुत मददगार होता है। यह परियोजना बहुत अच्छी है।"
एक अन्य छात्र, लक्ष्य माहेश्वरी ने कहा, "जब मैं प्रश्न पूछता हूं, तो मुझे उत्साह और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।"
स्कूल की इस पहल से अभिभावक भी जागरूक हुए हैं। वे अपने बच्चों में बदलाव देख रहे हैं। उदाहरण के लिए, उनकी बोलने की क्षमता, सोचने का तरीका और आत्मविश्वास पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत हो गया है। एक अभिभावक राजेश कुमार माहेश्वरी ने कहा, "शिक्षक बच्चों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हैं, जिससे वे संतुष्ट महसूस करते हैं।"
भाषा आशीष