एसआईआर से बंगाल के मतुआ क्षेत्र में चिंता उत्पन्न, भाजपा और तृणमूल को नुकसान की आशंका
नेत्रपाल
- 31 Oct 2025, 02:50 PM
- Updated: 02:50 PM
(प्रदीप्त तापदार)
कोलकाता, 31 अक्टूबर (भाषा) पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची में नए सिरे से संशोधन की तैयारी के बीच मतुआ क्षेत्र में दहशत, गुस्सा और संदेह का माहौल है तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और तृणमूल कांग्रेस दोनों को शरणार्थियों के इस गढ़ में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत बड़े पैमाने पर लोगों के मताधिकार से वंचित होने की आशंका है।
सीमावर्ती जिलों उत्तर 24 परगना, नदिया और दक्षिण 24 परगना की 40 से अधिक विधानसभा सीटों पर हिंदू शरणार्थी समुदाय मतुआ की निर्णायक उपस्थिति है। निर्वाचन आयोग द्वारा 2002 के बाद से पहली बार फर्जी, मृत तथा अपात्र मतदाताओं को बाहर करने के वास्ते एसआईआर कराए जाने के निर्णय ने इस समुदाय के बीच पहचान एवं नागरिकता को लेकर चिंताएं फिर से पैदा कर दी हैं।
जिन लोगों के नाम 2002 की मतदाता सूची में नहीं हैं, उन्हें अब पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज देने होंगे। लेकिन दशकों से बांग्लादेश से विस्थापित मतुआ समुदाय के हजारों मतदाताओं के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं और इससे न केवल इस समुदाय के लोग बल्कि तृणमूल तथा भाजपा भी बेचैन है, जिनके बीच लंबे समय से उनका समर्थन हासिल करने के लिए होड़ चल रही है।
केंद्रीय मंत्री और भाजपा की ओर से मतुआ समुदाय के प्रमुख चेहरे शांतनु ठाकुर ने समुदाय के लोगों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘अगर शरणार्थी मतुआ के नाम हटाए जाते हैं तो चिंता की जरूरत नहीं है। उन्हें नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत भारतीय नागरिकता मिल जाएगी।’’
बहरहाल, उनकी रिश्तेदार एवं तृणमूल की राज्यसभा सदस्य ममता बाला ठाकुर ने अगले कदमों की रूपरेखा तैयार करने के लिए दो नवंबर को उत्तर 24 परगना जिले के ठाकुरनगर में समुदाय के नेताओं की एक बैठक बुलाई है। वह राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से मतुआ समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मतुआ लोगों के नाम हटा दिए जाएंगे क्योंकि 2002 के बाद आए कई लोगों के पास दस्तावेज नहीं हैं और वे मतदान का अधिकार खो देंगे। भाजपा के नागरिकता जुमले को समझने के बाद मतुआ लोग हमें वोट दे रहे हैं।’’
भाजपा विधायक सुब्रत ठाकुर ने माना कि 2002 से 2025 के बीच आए लोग दस्तावेज नहीं दिखा पाएंगे। उन्होंने अनुमान लगाया कि राज्यभर में 30 से 40 लाख शरणार्थी सीएए के तहत पात्र हो सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बनगांव और रानाघाट संसदीय क्षेत्रों की 25-40 प्रतिशत मतदाता संख्या प्रभावित हो सकती है।
मतुआ महासंघ के महासचिव महितोष बैद्य ने कहा, ‘‘असमंजस और चिंता की स्थिति है। दोनों सरकारें बातें कर रही हैं, लेकिन कोई भी स्पष्ट समाधान नहीं दे रही है।’’
उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों पर शरणार्थी हिंदुओं को ‘‘भ्रमित और गुमराह’’ करने का आरोप लगाया। उन्होंने पूछा, ‘‘2014 से पहले आए लोगों के लिए भी कोई स्पष्टता नहीं है। मान लीजिए कोई 2005 या 2013 में आया है, तो उसका नाम 2002 की मतदाता सूची में नहीं है। जो लोग 31 दिसंबर 2014 के बाद आए हैं, वे सीएए के तहत आवेदन भी नहीं कर सकते। वे क्या करेंगे?’’
इस मुद्दे को लेकर भाजपा के भीतर भी मतभेद उभर रहे हैं। मतुआ नेता और भाजपा सांसद असीम सरकार ने कहा कि करीब 15 लाख मतुआ मतदाता मताधिकार खो सकते हैं।
भाषा गोला नेत्रपाल
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