सीएपीएफ में आईपीएस अधिकारियों की संख्या कम करने के फैसले पर पुनर्विचार संबंधी याचिका खारिज
नेत्रपाल नरेश
- 31 Oct 2025, 07:25 PM
- Updated: 07:25 PM
नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर (भाषा) केंद्र को झटका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने उस फैसले पर पुनर्विचार के आग्रह वाली याचिका खारिज कर दी है जिसमें निर्देश दिया गया था कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति कम की जाए और छह महीने में कैडर समीक्षा की जाए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ केंद्र की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उच्चतम न्यायालय के 23 मई के फैसले की समीक्षा का आग्रह किया गया था।
पीठ ने कहा, ‘‘हमने पुनर्विचार याचिका की विषय-वस्तु और उसके साथ संलग्न दस्तावेजों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया है और हम इस बात से संतुष्ट हैं कि 23 मई, 2025 के फैसले पर पुनर्विचार का कोई मामला नहीं बनता है।’’
इसने याचिका पर विचार करते हुए खुली अदालत में मौखिक सुनवाई के आग्रह को भी खारिज कर दिया।
पीठ ने 28 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘तदनुसार, पुनर्विचार याचिका खारिज की जाती है।’’
शीर्ष अदालत ने 23 मई को केंद्र को निर्देश दिया था कि वह आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एसएसबी सहित सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में कैडर समीक्षा करे, जो 2021 में होनी थी।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को निर्देश दिया है कि वह कैडर समीक्षा और मौजूदा सेवा नियमों/भर्ती नियमों की समीक्षा के संबंध में गृह मंत्रालय से कार्रवाई रिपोर्ट प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर उचित निर्णय ले।
अदालत का यह निर्देश गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन, कैडर समीक्षा और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने के लिए भर्ती नियमों के पुनर्गठन और संशोधन की मांग करने वाली याचिकाओं पर आया है।
शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘‘सीएपीएफ के कैडर अधिकारियों की सेवा गतिशीलता के दोहरे उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, ... एक ओर ठहराव को दूर करना और दूसरी ओर बलों की अभियानगत/कार्यात्मक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, हमारा मानना है कि सीएपीएफ के कैडर में वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (एसएजी) के स्तर तक प्रतिनियुक्ति के लिए निर्धारित पदों की संख्या को समय के साथ उत्तरोत्तर कम किया जाना चाहिए, दो साल की बाहरी सीमा के भीतर।’’
उच्चतम न्यायालय ने सीएपीएफ की भूमिका की सराहना की और कहा कि यह देश की सीमाओं पर सुरक्षा बनाए रखने के साथ-साथ आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों के निर्वहन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि केन्द्र का मानना है कि प्रत्येक केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल में आईपीएस अधिकारियों की उपस्थिति, प्रत्येक केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल के चरित्र को एक अद्वितीय केन्द्रीय सशस्त्र बल के रूप में बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
इसने कहा, ‘‘यह एक नीतिगत निर्णय है। बेशक, आईपीएस या आईपीएस अधिकारियों के संघ से संबंधित व्यक्तिगत अधिकारी यह नहीं कह सकते कि प्रतिनियुक्ति कोटा कितना होना चाहिए और प्रतिनियुक्ति कितने समय तक जारी रहनी चाहिए। वे केंद्र सरकार के नीतिगत निर्णय के आधार पर प्रतिनियुक्ति पर हैं, जो सीएपीएफ के सेवा नियमों/भर्ती नियमों के माध्यम से प्रकट होता है।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘जैसा कि बताया गया है, हम सीएपीएफ के अधिकारियों द्वारा व्यक्त की गई शिकायत से भी अनभिज्ञ नहीं हो सकते। हमारी सीमाओं की रक्षा करते हुए और देश के भीतर आंतरिक सुरक्षा बनाए रखते हुए राष्ट्र की सुरक्षा अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने में उनकी समर्पित सेवा को नजरअंदाज या अनदेखा नहीं किया जा सकता।’’
यह उल्लेख करते हुए कि सीएपीएफ बहुत कठिन परिस्थितियों में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं, अदालत ने कहा कि उनकी शिकायत है कि संबंधित सीएपीएफ के उच्च ग्रेड में पार्श्व प्रवेश के कारण, वे समय पर पदोन्नति पाने में असमर्थ हैं।
इसने कहा, ‘‘परिणामस्वरूप, काफी हद तक गतिरोध है। ऐसा गतिरोध सुरक्षाबलों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। ऐसे नीतिगत निर्णयों की समीक्षा करते समय इस बात को भी ध्यान में रखना होगा।’’
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