कर्नाटक : अदालत ने सरकारी परिसरों में गतिविधियों संबंधी याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
धीरज नरेश
- 04 Nov 2025, 08:22 PM
- Updated: 08:22 PM
बेंगलुरु, चार नवंबर (भाषा)कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सरकारी परिसरों के इस्तेमाल के संदर्भ में जारी सरकारी आदेश पर रोक लगाने के एकल पीठ के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा दाखिल अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
राज्य सरकार ने सरकारी स्वामित्व वाले स्थानों पर कोई भी गतिविधि आयोजित करने से पहले पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया था जिसपर एकल पीठ ने रोक लगा दी थी।
एकल पीठ ने 28 अक्टूबर को जारी अंतरिम आदेश में कहा था कि सरकारी आदेश (जीओ) प्रथम दृष्टया नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
सरकार ने आदेश में कहा कि इसका उल्लंघन करते हुए आयोजित किसी भी कार्यक्रम या जुलूस को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के प्रावधानों के तहत ‘‘गैरकानूनी सभा’’ माना जाएगा।
सरकारी आदेश में हालांकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का नाम स्पष्ट रूप से नहीं लिया गया है, लेकिन माना जा रहा है कि आदेश के प्रावधानों का उद्देश्य हिंदू दक्षिणपंथी संगठन की गतिविधियों को प्रभावित करना है, जिसमें उसके पथ संचलन भी शामिल हैं।
न्यायमूर्ति एस जी पंडित और न्यायमूर्ति गीता के बी की पीठ के समक्ष राज्य का पक्ष रखने के लिए पेश हुए महाधिवक्ता (एजी) शशि किरण शेट्टी ने दलील दी कि यह आदेश केवल सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण को आपराधिक बनाता है और मौलिक स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाता है।
पीठ ने सवाल किया कि क्या 10 या अधिक लोगों के एकत्र होने को स्वत: गैरकानूनी माना जा सकता है? क्या ऐसे प्रतिबंध एक साथ चलने वाले आम नागरिकों पर भी लागू होंगे?
महाधिवक्ता ने इसपर दलील दी कि यह प्रतिबंध केवल जुलूसों और रैलियों तक सीमित था, तथा याचिकाकर्ता का उद्यानों में सार्वजनिक चर्चा आयोजित करने का इरादा पूर्वानुमति के बिना अस्वीकार्य था।
राज्य की दलील का प्रतिवाद करते हुए प्रतिवादी गैर-सरकारी संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक हरनहल्ली ने दलील दी कि अंतरिम आदेश के खिलाफ अपील पोषणीय नहीं है।
उन्होंने कहा कि शांतिपूर्वक एकत्र होने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(बी) के तहत संरक्षित है और इसे केवल सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर ही प्रतिबंधित किया जा सकता है।
हरनहल्ली ने सरकारी आदेश को ‘स्पष्ट रूप से मनमाना’ बताते हुए दलील दी कि इसने बिना पूर्व अनुमति के खेल के मैदान में क्रिकेट खेलने जैसी नियमित गतिविधियों को प्रभावी रूप से आपराधिक बना दिया है।
सरकार द्वारा 18 अक्टूबर को जारी आदेश के मुताबिक किसी कार्यक्रम या आयोजन से तीन दिन पहले सरकारी परिसर के उपयोग की अनुमति लेनी होगी, और यह किसी भी निजी एसोसिएशन, सोसाइटी, ट्रस्ट, क्लब, व्यक्तियों के निकाय या किसी अन्य संस्था पर लागू होगा, चाहे वह पंजीकृत हो या नहीं।
भाषा धीरज