सनसनी फैलाने के लिए मीडिया का अदालत की 'सामान्य' टिप्पणियों को खबर बनाना चिंताजनक प्रवृत्तिः अदालत
पारुल पवनेश
- 04 Nov 2025, 09:11 PM
- Updated: 09:11 PM
नयी दिल्ली, चार नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि हाल के दिनों में यह एक “चिंताजनक प्रवृत्ति” बन गई है कि मीडिया केवल “सनसनी” पैदा करने के लिए मामलों की सुनवाई के दौरान अदालतों की ओर से की गई कुछ ऐसी “सामान्य” टिप्पणियों को प्रसारित कर रहा है, जो कार्यवाही से जुड़ी हो भी सकती हैं और नहीं भी।
अदालत ने कहा कि कार्यवाही की ऐसी रिपोर्टिंग, जो जनता में जिज्ञासा या दिलचस्पी बढ़ाने के लिए की जाती है, अक्सर यह समझे बिना स्वीकार कर ली जाती है कि वे टिप्पणियां न तो सुनवाई का हिस्सा होती हैं और न ही मामले के गुण-दोष से जुड़ी होती हैं, इसलिए उन्हें अनावश्यक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने व्यवसायी और अगस्ता वेस्टलैंड मामले के आरोपी श्रवण गुप्ता की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। गुप्ता ने अपनी याचिका में दावा किया है कि 16 और 17 जुलाई को कुछ मीडिया समूहों ने झूठी, दुर्भावनापूर्ण और मानहानिकारक खबरें प्रसारित कीं, जिनमें उनके वकील विकास पाहवा की पेशेवर प्रतिष्ठा और गरिमा पर सवाल उठाए गए थे।
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने अपने आदेश में कहा, “हाल के दिनों में यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति बन गई है कि मीडिया केवल सनसनी पैदा करने के लिए मामलों की सुनवाई के दौरान अदालतों की ओर से की गई कुछ बेहद सामान्य टिप्पणियों को प्रसारित कर देता है, जो कार्यवाही से जुड़ी हो भी सकती हैं और नहीं भी।”
उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा मामला है, जिसमें अदालत ने वकीलों के सुनवाई को बार-बार स्थगित करने का अनुरोध किए जाने पर चिंता जताते हुए एक सामान्य टिप्पणी की थी।
न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा कि यह कहना और झूठा आरोप लगाना कि टिप्पणी खास तौर पर पाहवा के लिए थी, न केवल गलत है, बल्कि इसका मकसद आम जनता के लिए एक सनसनीखेज कहानी भी गढ़ना है।
उन्होंने कहा कि इस तथ्य पर कोई ध्यान नहीं दिया गया कि ऐसा करने से उस व्यक्ति को नुकसान हो सकता है, जो वादी का प्रतिनिधित्व करने के अपने कर्तव्य का पूरी लगन से निर्वहन कर रहा है।
न्यायमूर्ति कृष्णा ने फैसले में कहा, “यह स्पष्ट रूप से मीडिया का काम है, जिसकी जिम्मेदारी न केवल जनता को सही जानकारी उपलब्ध कराने की है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करने की है कि सामान्य टिप्पणियों को संदर्भ से हटकर मुख्य घटना के रूप में पेश करके गैरजरूरी सनसनी पैदा न की जाए।”
गुप्ता के इस अनुरोध पर कि मीडिया समूहों को अपने प्रिंट और ऑनलाइन मंच से अपमानजनक सामग्री हटाने तथा सार्वजनिक माफी प्रकाशित करने का निर्देश दिया जाए, उच्च न्यायालय ने कहा कि यह उम्मीद की जाती है कि मीडिया समूह, जो काफी प्रतिष्ठित हैं, खुद इस बात पर विचार करेंगे कि क्या इस तरह की रिपोर्टिंग को उनके मंचों पर जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं तथा इसके लिए किसी और निर्देश की आवश्यकता नहीं है।
फैसले में अदालत ने कथित तौर पर लंदन में रह रहे गुप्ता के इस अनुरोध को भी खारिज कर दिया कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से दर्ज धन शोधन मामले में उनके खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) को रद्द कर दिया जाए।
विशेष धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) अदालत ने अगस्त 2020 में गुप्ता के खिलाफ एक ‘ओपन एंडेड’ गैर-जमानती वारंट जारी किया था। गुप्ता पर आरोप है कि संघीय जांच एजेंसी की ओर से पूछताछ के लिए तलब किए जाने के बाद वह 2019 में ब्रिटेन चले गए थे।
उच्च न्यायालय ने गुप्ता को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से जांच में शामिल होने की अनुमति देने से भी इनकार कर दिया। उसने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंस के नियम किसी पक्ष को वर्चुअल रूप से शामिल होने की अनुमति देते हैं, लेकिन याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत रूप से पेश होने से इनकार करने का अंतर्निहित अधिकार नहीं देते हैं, भले ही उनकी उपस्थिति अनिवार्य रूप से आवश्यक न हो।
अदालत ने कहा, “गुप्ता वीडियो कॉन्फ्रेंस नियमों की आड़ लेकर यह दावा नहीं कर सकते कि वह जांच में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये शामिल होने का दावा कर सकते हैं...। याचिकाकर्ता का कुछ समय से लगातार जारी आचरण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वह जांच में शामिल होने से बच रहा है और उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी करना सही था।”
उच्च न्यायालय ने कहा कि गुप्ता को डर है कि प्रत्यक्ष तौर पर पेश होने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। उसने कहा कि गैर-जमानती वारंट का उद्देश्य उनकी पेशी सुनिश्चित करना है और कानून इस डर के लिए पर्याप्त उपाय प्रदान करता है।
अगस्त 2023 में गुप्ता के खिलाफ इंटरपोल रेड नोटिस जारी किया गया था।
ईडी ने फरवरी 2022 में एक पूरक आरोपपत्र दायर किया, जिसमें गुप्ता को वीवीआईपी हेलिकॉप्टर ‘घोटाला’ मामले में आरोपी बनाया गया।
रियल एस्टेट कंपनी एमजीएफ डेवलपमेंट्स के निदेशक गुप्ता के खिलाफ धन शोधन से जुड़ी दो जांच के तहत उनकी 21 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की गई है।
ईडी का आरोप है कि गुप्ता के स्वामित्व और नियंत्रण वाली विदेशी संस्थाओं को 3,600 करोड़ रुपये के अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाले में 28.69 करोड़ रुपये (लगभग 3,457,180 अमेरिकी डॉलर) से अधिक की आपराधिक आय हासिल हुई।
गुप्ता 2005 से 2016 के बीच एम्मार एमजीएफ लैंड लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और कार्यकारी उपाध्यक्ष थे। ईडी का आरोप है कि इस दौरान गुप्ता मामले के एक अन्य आरोपी गौतम खेतान के संपर्क में आए, जिसने बाद में उन्हें गुइडो हैश्के (एक कथित बिचौलिया और उसी मामले में एक आरोपी) से मिलवाया।
ईडी के मुताबिक, गुप्ता ने वीवीआईपी हेलिकॉप्टर सौदे में खेतान और हैश्के द्वारा रिश्वत के रूप में अर्जित अवैध आय को वैध करने के लिए विदेशी कंपनियां बनाईं।
भारत ने एक जनवरी 2014 को फिनमेकेनिका की ब्रिटिश सहायक कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के साथ भारतीय वायुसेना को 12 एडब्ल्यू-101 वीवीआईपी हेलिकॉप्टर की आपूर्ति के लिए किए गए अनुबंध को रद्द कर दिया था। ऐसा कथित तौर पर अनुबंध संबंधी दायित्वों के उल्लंघन और सौदा हासिल करने के लिए फर्म की ओर से 423 करोड़ रुपये की रिश्वत दिए जाने के आरोपों के कारण किया गया था।
भाषा पारुल