पेंशन के लिए पांच दशक से संघर्ष कर रही विधवा को उच्च न्यायालय ने राहत दी
नेत्रपाल पवनेश
- 20 Nov 2025, 04:22 PM
- Updated: 04:22 PM
चंडीगढ़, 20 नवंबर (भाषा) पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने 80 वर्षीय एक महिला को राहत प्रदान की है, जो अपने पति की पारिवारिक पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों के लिए लगभग पांच दशकों से संघर्ष कर रही थी। उसके पति की 1974 में मृत्यु हो गई थी।
अदालत ने इस बात को संज्ञान में लिया कि याचिकाकर्ता, अशिक्षित और बेसहारा 80 वर्षीय विधवा, लगभग पांच दशकों से दर-दर भटकने के लिए मजबूर है और अंततः उसने अपने दिवंगत पति की पारिवारिक पेंशन तथा अन्य सेवानिवृत्ति लाभों को प्राप्त करने के संघर्ष में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बराड़ की अदालत ने 14 नवंबर के अपने आदेश में हरियाणा सरकार के बिजली विभाग के प्रधान सचिव या प्रभारी प्रशासनिक अधिकारी को निर्देश दिया कि वह दो महीने की अवधि के भीतर व्यक्तिगत रूप से महिला के दावों की सत्यता की पड़ताल करें और यह सुनिश्चित करें कि याचिकाकर्ता को मिलने वाले सभी वैध लाभ जारी किए जाएं।
अदालत ने उल्लेख किया कि संवैधानिक न्यायालयों का मौलिक अधिकारों को बनाए रखने तथा यह सुनिश्चित करने का पवित्र दायित्व है कि संवैधानिक दृष्टिकोण की समाज के सबसे कमजोर वर्गों तक पहुंच हो।
न्यायमूर्ति बराड़ ने कहा कि इस संवैधानिक योजना के अंतर्गत, दबे-कुचले, हाशिए पर पड़े लोगों तथा सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर रहने वाले लोगों की सुरक्षा और उन्हें राहत प्रदान करने में न्यायपालिका की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
न्यायाधीश ने कहा कि (संविधान की) प्रस्तावना प्रत्येक नागरिक के लिए मार्गदर्शक वादे के रूप में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के आदर्शों को पूरी गंभीरता से प्रतिपादित करती है।
उन्होंने अपने आदेश में कहा कि जब वंचित वर्ग के व्यक्तियों के पास अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संसाधन का अभाव होता है, तो संवैधानिक न्यायालयों का यह कर्तव्य हो जाता है कि वे सुनिश्चित करें कि उनके अधिकार केवल सैद्धांतिक या भ्रामक न रहें।
न्यायाधीश ने कहा कि मानवीय गरिमा, सहानुभूति और उत्पीड़ित लोगों के उत्थान पर आधारित संवैधानिक करुणा के सिद्धांत ने इस दृष्टिकोण को निर्देशित किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘80 वर्षीय एक विधवा को राहत प्रदान करना और उसके अधिकारों को सुरक्षित करना न्यायिक विवेक या उदारता का मामला नहीं है, बल्कि यह संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 14, 19 और 21 में निहित एक संवैधानिक अनिवार्यता है।’’
याचिका का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति बराड़ ने यह भी कहा, ‘‘जब भी अदालतें सबसे कमज़ोर लोगों की रक्षा करने में विफल रहती हैं, तो संवैधानिक वादा कमज़ोर हो जाता है। लेकिन जब वे उनकी रक्षा के लिए उठ खड़ी होती हैं, तो संविधान की परिवर्तनकारी भावना अपने सबसे सच्चे रूप में प्रदर्शित होती है।’’
याचिकाकर्ता लक्ष्मी देवी के पति महा सिंह, 24 जून, 1955 को बिजली विभाग में लाइनमैन-2 के रूप में नियुक्त हुए थे और हरियाणा सरकार के तत्कालीन बिजली विभाग में सेवारत थे। 5 जनवरी 1974 को हरियाणा राज्य विद्युत बोर्ड (एचएसईबी), बल्लभगढ़ के कार्यकारी अभियंता (पी) प्रभाग के अधीन उप-स्टेशन अधिकारी के रूप में कार्य करते समय उनकी मृत्यु हो गई।
इसके बाद, याचिकाकर्ता को 6,026 रुपये का अनुग्रह भुगतान प्राप्त हुआ। महिला के वकील ने तर्क दिया कि संबंधित अधिकारियों को कई बार अभ्यावेदन देने के बावजूद याचिकाकर्ता को पारिवारिक पेंशन, ग्रेच्युटी और अवकाश वेतन सहित अन्य सभी सेवानिवृत्ति लाभ कभी नहीं दिए गए।
यह भी दलील दी गई कि 2007 में, याचिकाकर्ता का बेटा उससे अलग हो गया और कहीं चला गया, जिससे वह बेसहारा हो गई। वह पड़ोसियों और बाद में अपनी विवाहित बेटी पर निर्भर हो गई। इसके बाद, याचिकाकर्ता गंभीर रूप से बीमार हो गई और 2015 में लकवाग्रस्त भी हो गई।
याचिकाकर्ता की पूर्व रिट याचिका का निपटारा 2005 में प्रतिवादियों को उसके अभ्यावेदन पर निर्णय लेने के निर्देश के साथ कर दिया गया था, तथापि मामला लंबित ही रहा, तथा विभागों के बीच पत्राचार जारी रहा, तथा कोई ठोस राहत नहीं दी गई।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह मामला प्रशासनिक उदासीनता की निराशाजनक और व्यथित करने वाली तस्वीर पेश करता है’’
अदालत ने कहा कि पहले से ही दुखी और वित्तीय कठिनाई का सामना कर रही वृद्ध विधवा को प्रणालीगत उदासीनता एवं प्रक्रियात्मक उपेक्षा के कारण और अधिक कष्ट सहना पड़ा है।
इसने कहा, ‘‘ऐसी स्थितियां इस दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता को उजागर करती हैं कि जिन्हें न्याय की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, वे अक्सर इसे प्राप्त करने में स्वयं को असहाय पाते हैं। कोई विकल्प न होने पर, याचिकाकर्ता एक बार फिर इस अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य हुई।’’
भाषा नेत्रपाल