‘उदयपुर फाइल्स’ पर प्रतिबंध की मांग : निर्माता को फिल्म की स्क्रीनिंग की व्यवस्था करने का निर्देश
सुरभि मनीषा
- 09 Jul 2025, 02:22 PM
- Updated: 02:22 PM
नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने दर्जी कन्हैया लाल हत्या मामले पर आधारित ‘उदयपुर फाइल्स’ के निर्माता को निर्देश दिया कि वह फिल्म पर प्रतिबंध का अनुरोध करने वालों के लिए इसकी ‘स्क्रीनिंग’ की व्यवस्था करें।
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) और निर्माताओं ने अदालत को बताया कि फिल्म के आपत्तिजनक हिस्सों को हटा दिया गया है, जिसके बाद पीठ ने यह निर्देश पारित किए।
पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें दावा किया गया था कि फिल्म से देश में सांप्रदायिक तनाव भड़क सकता है और सार्वजनिक व्यवस्था बाधित हो सकती है।
मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की खंडपीठ ने निर्माताओं को याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील के लिए बुधवार को ही ‘स्क्रीनिंग’ की व्यवस्था करने का निर्देश दिया और सभी पक्षकारों को फिल्म के मौजूदा अंश को देखने और बृहस्पतिवार को अदालत आने को कहा।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित है, लेकिन ‘‘फिल्म का उद्देश्य सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देना प्रतीत होता है।’’
सिब्बल ने अदालत को बताया, ‘‘फिल्म कुल मिलाकर समस्या पैदा करने वाली प्रतीत होती है, इसलिए अदालत से इसे पूरी तरह देखने का आग्रह किया जाता है।’’
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और सीबीएफसी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने कहा कि सीबीएफसी ने पहले ही चिह्नित सामग्री को हटा दिया है।
एएसजी ने कहा, ‘‘जो भी आरोप हैं, केंद्रीय बोर्ड ने फिल्म से उन सभी दृश्यों को हटा दिया है।’’
इस पर सिब्बल ने कहा कि भले ही फिल्म से कुछ अंशों को हटा दिया गया हो लेकिन प्रतीत होता है कि ‘‘फिल्म का उद्देश्य वैमनस्य को बढ़ावा देना है। फिल्म का उद्देश्य पूरे समुदाय को निशाना बनाना और वैमनस्य को बढ़ावा देना है।’’
इसके बाद सिब्बल ने अदालत से फिल्म ‘‘देखने’’ का आग्रह किया।
अदालत ने निर्माता को वकील के लिए स्क्रीनिंग की व्यवस्था करने का निर्देश देते हुए कहा, ‘‘आप (सिब्बल) देखें कि कौन से दृश्य हटाए गए हैं। फिल्म देखें। फिर कल आएं।’’
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आप (निर्माता) कह रहे हैं कि आपने आपत्तिजनक अंशों को हटा दिया है। हो सकता है कि देखने के बाद उन्हें (सिब्बल) कोई आपत्ति न हो।’’
जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी द्वारा दायर एक याचिका सहित विभिन्न याचिकाओं में दावा किया गया है कि 26 जून को जारी फिल्म के ट्रेलर में ऐसे संवाद और दृश्य थे जिनकी वजह से 2022 में सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा हुआ था और इससे फिर से वही सांप्रदायिक भावनाएं भड़कने की आशंका है।
इस बीच, बुधवार को निर्माता ने अदालत को सूचित किया कि फिल्म का ट्रेलर हटा दिया गया है।
इसके जवाब में सिब्बल ने कहा कि नुकसान पहले ही हो चुका है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि कन्हैया लाल की हत्या दो कट्टरपंथियों ने की थी, लेकिन ट्रेलर में इसे ‘‘गलत’’ तरीके से दिखाया गया और यह दर्शाने की कोशिश की गई है कि ऐसा समुदाय के धार्मिक प्रमुखों/नेताओं की मिलीभगत से किया गया है।
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि फिल्म अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हथियार बनाकर बहुलवादी, समावेशी और धर्मनिरपेक्ष भारत के संवैधानिक दृष्टिकोण को कमजोर करती है और सामाजिक एवं धार्मिक विभाजन को गहरा करने वाले कथनों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करती है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘कलात्मक अभिव्यक्ति चाहे कितनी भी विचारोत्तेजक क्यों न हो, उसे भाईचारे को कुचलने और संविधान में निहित राष्ट्र की नैतिक नींव को उखाड़ फेंकने का माध्यम बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती।’’
उदयपुर के एक दर्जी कन्हैया लाल की जून 2022 में कथित तौर पर मोहम्मद रियाज और मोहम्मद गौस ने हत्या कर दी थी।
हमलावरों ने बाद में एक वीडियो जारी किया था जिसमें दावा किया गया था कि पूर्व भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) नेता नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर की गई विवादास्पद टिप्पणी के बाद उनके समर्थन में दर्जी कन्हैया लाल शर्मा के सोशल मीडिया खाते पर कथित तौर पर साझा किए एक पोस्ट के जवाब में उसकी हत्या की गई थी।
इस मामले की जांच राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने की थी और आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं के अलावा कठोर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
यह मुकदमा जयपुर की विशेष एनआईए अदालत में लंबित है।
भाषा सुरभि