सबरीमला सोना मामले में भ्रष्टाचार रोधी कानून लागू होता है या नहीं, इसकी पड़ताल करें: अदालत
अमित धीरज
- 05 Nov 2025, 10:30 PM
- Updated: 10:30 PM
कोच्चि, पांच नवंबर (भाषा) केरल उच्च न्यायालय ने बुधवार को सबरीमला मंदिर में सोने की परत चढ़ाने में कथित अनियमितता की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) से कहा कि वह इसकी पड़ताल करे कि क्या मामले के तथ्य और परिस्थितियों के मद्देनजर टीडीबी के किसी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार रोधी अधिनियम के प्रावधान लागू होते हैं और यदि ऐसा है तो कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए।
न्यायमूर्ति राजा विजयराघवन वी. और न्यायमूर्ति के. वी. जयकुमार की पीठ ने यह निर्देश इस बात पर संज्ञान लेने के बाद जारी किया कि मंदिर के द्वारपालक की मूर्तियों और अन्य कलाकृतियों पर सोने की परत चढ़ाने के संबंध में गंभीर अनियमितताएं और संभावित गबन हुआ है।
पीठ ने कहा कि ऐसी अनियमितताएं ‘‘परोक्ष तौर पर त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) के अधिकारियों की मिलीभगत से की गई थीं, जो प्राधिकार के उच्चतम स्तर से लेकर राज्य में मंदिरों के प्रशासन में शामिल अधीनस्थ कर्मचारियों तक थीं।’’
अदालत ने कहा कि टीडीबी की कार्यवाही विवरण पुस्तिका (मिनट्स बुक) केवल 28 जुलाई, 2025 तक ही अद्यतन की गई थी और वे प्रविष्टियां भी ‘‘अनियमित और अपूर्ण’’ पाई गईं।
पीठ ने कहा कि यह ‘‘विशेष रूप से चिंताजनक’’ है कि 2 सितंबर, 2025 के बोर्ड के आदेश के बारे में ‘‘टीडीबी की कार्यवाही पुस्तिका में कोई प्रविष्टि नहीं पाई गई’’, जिसमें स्मार्ट क्रिएशन्स, चेन्नई में द्वारपालक मूर्तियों की मरम्मत और सोने की परत चढ़ाने की अनुमति दी गई थी।
उसने कहा, ‘‘हमारे विचार से यह चूक अत्यंत गम्भीर मामला है तथा इसकी गहन जांच की आवश्यकता है।’’ साथ ही कहा गया है कि ‘‘कार्यवाही विवरण पुस्तक को नियमित तथा समसामयिक रूप से बनाए रखने में विफलता टीडीबी की ओर से गंभीर चूक है।’’
पीठ ने यह भी कहा कि बेंगलुरु के व्यवसायी उन्नीकृष्णन पोट्टी को चेन्नई में सोने की परत चढ़ाने का काम करने की ‘‘खुली छूट’’ दी गई थी। पोट्टी अनियमितताओं के संबंध में दर्ज मामलों में मुख्य आरोपी है और हाल ही में उसे गिरफ्तार किया गया था।
अदालत ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि पोट्टी ने कुछ देवस्वोम बोर्ड के अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके अपनी ‘‘संदिग्ध गतिविधियां’’ शुरू कीं, जिसकी शुरुआत श्रीकोविल (गर्भगृह) के मुख्य द्वार पर सोने की परत चढ़ाने के तथाकथित प्रायोजन से हुई।
अदालत ने कहा कि श्रीकोविल, हुंडी, गर्भगृह के दोनों ओर भगवान अयप्पा की आकृतियां, मुख्य द्वार, दोनों द्वारपालक आदि सभी को मैकडॉवेल एंड कंपनी लिमिटेड ने 1998-1999 के दौरान पारंपरिक तरीकों से 30 किलोग्राम सोने का उपयोग करके सोने से मढ़ा था।
अदालत ने कहा कि जो अनियमितताओं के पीछे थे, उन्होंने 2019 में इन कलाकृतियों से भारी मात्रा में सोना निकाल लिया और केवल न्यूनतम मात्रा में सोने का उपयोग करके उस पर परत चढ़ायी।
अदालत ने कहा कि जब यह पतली परत फीकी पड़ गई और विसंगतियां सामने आईं, तो 2025 में ‘‘पुनः परत चढ़ाने के बहाने कलाकृतियों को गुप्त रूप से चेन्नई ले जाकर पहले की चोरी को छिपाने का प्रयास किया गया’’।
अदालत ने 2019 में सोने की वास्तविक हानि का पता लगाने के लिए कलाकृतियों का वैज्ञानिक परीक्षण करने के विशेष जांच दल (एसआईटी) के अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
अदालत ने कहा कि इन परीक्षणों से 2019 में लेनदेन के दौरान सोने की वास्तविक मात्रा और गंवाये गए सोने का पता लगाने में मदद मिलेगी और एसआईटी को 15 नवंबर या उससे पहले यह प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया, जब भगवान अयप्पा मंदिर मंडला-मकरविलक्कु तीर्थयात्रा के लिए खुलेगा।
पीठ ने अनियमितताओं की जांच की निगरानी के लिए स्वयं द्वारा शुरू की गई एक नयी रिट याचिका में ये निर्देश जारी किए और ये टिप्पणी की।
रिट याचिका के मद्देनजर, उच्च न्यायालय ने उसे या देवस्वोम विशेष आयुक्त को सूचित किए बिना द्वारपालक मूर्तियों को सोने की परत चढ़ाने के लिए चेन्नई ले जाने के संबंध में अपने द्वारा शुरू किए गए पहले के मुकदमे को बंद कर दिया।
भाषा अमित