जी20 और नागरिक समाज के बड़े नेता: सार्थक कार्रवाई की जगह सिर्फ दिखावा
द कन्वरसेशन नोमान पवनेश
- 20 Nov 2025, 06:01 PM
- Updated: 06:01 PM
(लूके सिनवेल, जोहानिसबर्ग विश्वविद्यालय)
जोहानिसबर्ग, 20 नवंबर (द कन्वरसेशन) दुनिया की 20 सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं के समूह जी20 में असमानता से लड़ने की बात तो की जाती है, लेकिन इसके पीछे एक सोची-समझी दिखावे की प्रक्रिया है जिसमें ताकत के पुनर्वितरण के बजाय सिर्फ विरोध और असहमति का प्रबंध किया जाता है।
इस साल जी20 के एजेंडे में असमानता सबसे ऊपर है। इस समूह की अध्यक्षता दक्षिण अफ्रीका कर रहा है। राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने कहा है कि अगर जी20 बड़ी वैश्विक आर्थिक चुनौतियों से निपटना चाहता है, तो उसे असमानता को कम करने के लिए तेज़ी से काम करना होगा।
अच्छी तरह वित्तपोषित ‘ऑक्सफैम’ गैर-सरकारी संगठन ने इस रुख की सराहना की है और कहा कि जी20:
उन लोगों की आवाज़ को बुलंद कर रहा है जो असमानता के बोझ तले दबे हुए हैं। यह दिखा रहा है कि एक और दुनिया संभव है: जो अरबपतियों द्वारा और उनके लिए नहीं, बल्कि बाकी हम सभी के द्वारा और हमारे लिए शासित हो।
लेकिन ऐसे संगठन सीधे तौर पर ज़मीनी स्तर के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। असमानता पर टिप्पणी करते समय, वे अक्सर ऐसे सामान्यीकृत बयान दे बैठते हैं जो स्थानीय सच्चाई और आम लोगों की राजनीति को प्रतिबिंबित नहीं करते।
दक्षिण अफ्रीका अब भी दुनिया का सबसे ज़्यादा गैर-बराबरी वाला देश है। शहरों और अनधिकृत बस्तियों में ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र पर मेरे शोध से पता चलता है कि ज़्यादातर लोगों को लोकतंत्र के नाम पर चुप करा दिया गया है।
एएनसी सरकार की बाजार आधारित नीति ने पानी और बिजली जैसी बुनियादी ज़रूरतों को उत्पाद बना दिया और रंगभेद से विरासत में मिली निजी संपत्ति प्रणाली को मज़बूत किया।
रंगभेद के बाद के समय में (1994 के बाद से) आर्थिक असमानता और भी बढ़ गई है। परिणामस्वरूप, देश की एक यूनियन फेडरेशन ने दक्षिण अफ्रीकी सरकार के असमानता पर बात करने पर भी आपत्ति जताई, क्योंकि फेडरेशन का मानना है कि असमानता को बढ़ाने में सरकार की भी भूमिका रही है।
असमानता के खिलाफ विरोध और नागरिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने वाले एक समाजशास्त्री के रूप में, मैंने पाया है कि जब भागीदारी में विरोध को हटा दिया जाता है, तो वह सिर्फ वैधता दिखाने का एक साधन बनकर रह जाता है।
दूसरे शब्दों में, शासन, लोक सेवा और दूसरे सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा में ज़मीनी स्तर के समुदायों को शामिल करना एक अच्छा परामर्श बन जाता है।
यह मौजूदा सत्ता संरचना को चुनौती देने के बजाय उन्हें सही ठहराता है। लोगों की आवाज़ भले ही सुनाई दे, लेकिन नतीजे पहले से ही तय हैं।
मेरा कहना है कि जी20 की असमानता कम करने की योजना सिर्फ दिखावे या राजनीतिक नाटक के ज़रिये शासन करने का तरीका है। यह ऐसा शो है जिसमें नेता मजदूर वर्ग की बड़ी समस्याओं पर ध्यान देते हुए दिखाई दे सकते हैं, लेकिन असल में उस व्यवस्था की रक्षा करते हैं जिससे अमीर और ताकतवर लोगों को फायदा होता है।
जी20 का गठन 2008 के आर्थिक संकट के बाद हुआ था, जब बड़े बैंकों और आवास बाजारों के ढहने से वैश्विक अर्थव्यवस्था में गहरी दरारें सामने आईं।
जी20 का गठन इसलिए किया गया था ताकि लोगों का भरोसा वापस लाया जा सके और यह दिखाया जा सके कि नेता आम लोगों की बात सुन रहे हैं। इसे एक ऐसे मंच के रूप में पेश किया गया, जहां दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक साथ आकर नागरिक समाज को “सुनती” हैं और मिलकर संकटों का समाधान करती हैं।
जी20 की सालाना बैठकों से पहले समाज के अलग-अलग क्षेत्रों से सलाह लेने की प्रक्रिया के तहत, बड़े नेता (जैसे राष्ट्राध्यक्ष और वित्त मंत्री) गैर-लाभकारी संगठनों के साथ साझा प्रेस वार्ता करते हैं और नागरिक समाज के साथ बातचीत करते हैं।
कार्यकर्ताओं के कार्यकारी समूह और बड़े नेताओं के संयुक्त समूह बनाए जाते हैं, और सहमति वाले बयान जारी किए जाते हैं। लेकिन न तो असली सत्ता किसी को सौंपी जाती है और न हीं पूंजीवाद को खत्म करने के लिए कोई कदम उठाया जाता है। वही पूंजीवाद जो गरीबी और असमानता को बनाए रखता है।
जहां विरोध सामने आता है: सिविल 20
‘सिविल 20’ (सी20), जो जी20 का आधिकारिक नागरिक समाज समूह है, एक विकल्प जैसा दिखता है। यह दुनिया भर की 3,000 से अधिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों से बना है। इसका मकसद जी20 को जवाबदेह ठहराना है। लेकिन क्या इसके पास सच में कोई वास्तविक ताकत है?
सी20 की 2025 घोषणा में कहा गया है: “आगे का रास्ता भागीदारी, संसाधनों के न्यायपूर्ण बंटवारे और पर्यावरणीय न्याय पर आधारित होना चाहिए … यह साल ऐसा हो, जब नागरिक समाज को सिर्फ सुना ही नहीं गया, बल्कि उसकी बात मानी भी गई।”
द कन्वरसेशन नोमान